Friday 2 March 2018

समस्या और संविधान

यह एक कड़वी सच्चाई है कि आज हमारी जो भी अच्छी या बुरी स्थिति है वह हमारे देश के इसी संविधान के कारण है इसके लिए मनुस्मृति या किसी अन्य प्राचीन ग्रंथ को दोष देना परले दर्जे की मूर्खता धूर्तता या षड्यंत्र के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

इसलिए समाज के सीधे सरल और अपनी स्थितियों से परेशान लोगों को धूर्तों और षडयंत्रकारियों के छलावे में नहीं आना चाहिए जो कभी मनुस्मृति को जलाने की बात करते हैं कभी प्राचीन भारतीय त्योहारों को वंचितों और दलितों को न मनाने के लिए बहकाने का प्रयास करते हैं और यहां तक कि प्राचीन भारतीय आस्था के प्रतीको को भी अपमानित करने और उनकी अवज्ञा करने के लिए झूठे और मनगढ़ंत किस्से कहानियों का सहारा लेते हैं।

मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरी तरह समर्थक हूं लेकिन स्वतंत्रता के नाम पर उदंडता करने षड्यंत्र रचने झूठ बोलने और समाज को नितांत तर्कहीन तथ्यहीन असत्य भ्रामक प्रचार के द्वारा समाज को तोड़ने के प्रयासों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा और अधिकार मानने के लिए तैयार नहीं हूं।

इसलिए मेरा स्पष्ट मत है कि इस प्रकार के धूर्तों षडयंत्रकारियों विघटनकारी को समाज को गुमराह करने की छूट देना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है।

आखिर अपराधियों को खुली छूट देना क्या अपने आप को भयानक खतरे में डालना नहीं है और क्या इनको रोकने की जिम्मेदारी शासन की नहीं है? इसलिए इन पर पूरी कठोरता और सत्यता के साथ दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए।

हालांकि हमारी सभी समस्याओं की जड़ इसे संविधान में छिपी है लेकिन मैं संविधान को जलाने या उसे अपमानित करने की बात कभी नहीं मान सकता हालांकि मैं यह मानता हूं कि वर्तमान संविधान भारतीय परंपरा रीति-रिवाजों सभ्यता संस्कृति और उसके आदर्शों से प्रेरणा ग्रहण नहीं करता बल्कि यह अंग्रेजों के अंधा अनुकरण का प्रतिफल है इसलिए इसमें कुछ मूलभूत सुधार किए जाने चाहिए और गंभीर विचार विमर्श के द्वारा हमें उचित सुधार करने का रास्ता अपनाना चाहिए।

सारी घटनाओं को बहुत बारीकी से देखने पर यह बात भी समझ में आती है कि इस काम में कई विघटनकारी ताकतें यह समझा रही थी कि देश के संविधान में किसी भी प्रकार का संशोधन करना बाबा साहब अंबेडकर का अपमान करना है लेकिन धीरे-धीरे यह षड्यंत्र लोगों की समझ में आने लग गया है किंतु यह अपराधी जनता को गुमराह करने और समाज को तोड़ने के दुष्कर्मों से बाज नहीं आना चाहते और इनका असली इलाज केवल कठोर दंड ही हो सकता है।

साभार 

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