The Super Animal
सन 1773 का समय था, उस समय जीवविज्ञान शाखा में एक ऐसी खोज हुई जिसने वैज्ञानिक बन्धुओ को चौंकने पर मजबूर कर दिया। यह वो समय था जब जिज्ञासु मनुष्य- प्राणियों की हजारों प्रजातियों के शोध में लगा हुआ था और उनके नामकरण के लिए नए नाम भी खोज रहा था।
ऐसे ही एक शोधकार्य में जब वैज्ञानिक "जॉन अगस्त" को एक "Tardigrades" नामक प्राणी के ऊपर रिसर्च करने का मौका मिला तो वे आश्चर्य से वंचित न रह सके। महज 0.5 मिलीमीटर की लंबाई और आठ पैरों में पाया जानेवाला यह micro-animal अपनी सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर "super animal" का खिताब पा गया।
गौर करे-- इतनी लम्बाई आप द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले pen की नोंक पर लगे छर्रे के मोटाई जितनी है।
तो आखिर इस फुद्दू से जानवर में ऐसी क्या खूबियां है जो प्राणियों की दुनिया मे इसे अधिक ताक़दवर और सहनशील होने का title प्राप्त हो गया....
tardigrades को आसान भाषा मे waterbear यानी "जलभालु" भी कहा जाता है। यह जानवर समुंदर की असीमित गहराई से लेकर जमीन पर माउंट एवरेस्ट जैसे पहाड़ों पर भी पाया जाता है। शोधकार्य में पता चला कि इसकी 1150 के करीब उप प्रजातियां मौजूद है।
जिज्ञासावश वैज्ञानिकों ने इसपर कुछ बहुतही कठिन प्रयोग किये जिसमे यह सभी प्रयोगों में जीवित रहकर सफल हुआ। प्रयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने इसे धरती की सबसे ठंडी जगह जो मनुष्यो द्वारा बनाई गई कृत्रिम रेफ्रीजिरेशन टेक्नोलॉजी है, इसके भीतर absolute zero तापमान से केवल 1°ऊपर रखकर इसका निरीक्षण किया...यह वो -272° तामपान है जिसके बाद पानी के अणु अपनी अंतिम ठंडाई से नीचे नही पहुंच पाते। मजे की बात है कि हमारा जलभालु नामक यह अदना सा प्राणी आश्चर्यजनक रूप से इस तामपान को भी झेल गया।
अब इसके बाद वैज्ञानिक महाशय को इसे गर्मी में रखने की सूझी तो इन्होंने उसे उठाकर 150° तक के गर्मी में पटक दिया लेकिन ये जानवर भी कोई कम नही था.. इसने वहां भी अपने आपको जीवित रखकर ये संदेश दे दिया कि चाहे तुम जो भी कर लो...मुझे नही मार पाओगे "गब्बर चच्चा"...
जब शोधकर्ताओं को इतने पर भी संतुष्टी नही हुई तो इन्होंने यह जांचने का प्रयास किया कि बिना पानी और भोजन के इस जानवर की हालत आखिर क्या होगी... तथा, इस परीक्षण में पाया गया कि जलभालु बिना खाएपिये तकरीबन 10 वर्षो तक जीवित रह सकता है।
इतने पर ही न रुकते हुए इन जालिमों ने इसपर और भी कई परीक्षण किए... उन्होंने इसे अंतिरिक्ष में मौजूद हूबहू परिस्थिति में रखा जहा रेडियशन की मात्रा बहुत अधिक थी... उन्होंने इसे सबसे जहरीली जगहों में भी कई महीनों तक रखा...लेकिन बंदा था कि मरने को तैयार ही नही।
यह ऐसा प्राणी है जो अपने डैमेज हो चुके DNA को भी अपने आप रिपेयर कर लेता है। यह अपने शरीर मे मौजुद पानी की मात्रा को नियंत्रित कर सकता है जिससे यह अतिशीत या अतिगर्म माहौल में स्वयं को जीवित रख पाता है।
और अंततः इस प्रकार ,, डायनोसॉर से भी पुराने इस super animal ने सभी प्रकार की जानलेवा परिस्थितियों को पार करके सबसे सहनशील और ताक़दवर प्राणी के रूप में उभरकर यह खिताब प्राप्त किया.....।
Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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