Monday 12 March 2018

राज्य की संरचना का प्रश्न


 इस विषय में विचार से पूर्व कुछ आधारभूत बातों को स्मरण कर लेना आवश्यक है जिसके विषय में भारत के शिक्षित लोग भी अधिक ध्यान नहीं देते सिवाय कुछ विशेषज्ञ लोगों के
  लोकतंत्र का सदुपयोग करते हुए इस विषय में अपने-अपने मत सभी लोग उत्साह से रखते हैं रखते हैं जबकि ऐसा करने से पहले विश्व के विभिन्न विभिन्न राज्यों के विषय में और उन के संदर्भ में भारत के वर्तमान राज्य की संरचना के विषय में आधारभूत जानकारी  तो एकत्र कर ही लेनी चाहिए
 श्री जवाहरलाल नेहरू ने सोवियत संघ के कम्युनिस्ट ढांचे से प्रेरणा लेकर अंग्रेजो के द्वारा तैयार प्रशासनिक ढांचे को धीरे-धीरे प्रतिबद्ध नौकरशाही में योजना पूर्वक  रूपांतरित किया .इस कारण राज्य के अधीन ही शिक्षा और संचार सहित अभिव्यक्ति और समाज संगठन के सभी रूप आ गए .परिणाम यह है कि  पढ़े लिखे भारतीय केवल वही जानते हैं जो सरकार के नियंत्रण वाले विद्यालय और संचार माध्यमों से प्रचारित-प्रसारित होता है.

 यह तो अच्छा हुआ कि उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में प्रशासनिक ढांचे में थोड़ी उदारता आई और उसकी जकड़न घटी. जिसके कारण तथा साथ ही प्रौद्योगिकी की प्रगति और  सोशल मीडिया के  कारण वैसी जकड़बंदी संभव नहीं रही परंतु अभी भी शिक्षित भारतीय  के लिए जानकारी का मुख्य स्रोत सरकारी तंत्र के नियंत्रण से फैलाई गई सूचनाएं ही हैं.

 इसलिए बहुत आवश्यक है कि हम आधारभूत बातों को याद रखें .
विश्व में विविध प्रकार के राज्य हैं और भारत का वर्तमान राजकीय ढांचा किसी  सार्वभौम ढांचे का अंग नहीं है.

विभिन्न प्रकार के राज्य

 हमें यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि समकालीन विश्व में विविध प्रकार के राज्य हैं ,जिनमें मुस्लिम ,बौद्ध और कतिपय प्राचीन संस्कृतियों वाले राज्यों के अतिरिक्त ईसाई राज्य बड़ी संख्या में है.

 मुस्लिम राज्यों में कुरान और हदीस ही शासन का मूल आधार है, इसके संरक्षक  के रूप में वहां मिल्लत और मुल्ला  मौलवियों की बड़ी  फ़ौज हर देश में है.,

 बौद्ध देशों में बुद्ध धर्म का एक व्यवस्थित संघ है जिसको राज्य अपना सदा संदर्भ बनाता है

 यूरोप में  जो ईसाई देश हैं,  अलग-अलग राज्यों में ईसाईयत के अलग-अलग पंथ  राज्य के द्वारा विशेष रूप से संगठित ईसाईयत के रूप में मान्य है.
 जैसे कि इंग्लैंड का क्राउन प्रोटेस्टेंट ईसाइयत का अधिकृत संरक्षक है और प्रोटेस्टेंट ईसाइयत वहां का घोषित राजधर्म है.

 ऑस्ट्रिया में रोमन कैथोलिक ईसाई राजधर्म है 
फ्रांस और जर्मनी में भी ईसाइयत के अलग-अलग पंथ राजधर्म घोषित हैं .फ्रांस के राष्ट्रपति को असीमित अधिकार प्राप्त हैं और वह कैथोलिक ईसाईयत का अधिकृत और सर्वोच्च संरक्षक है .कैथोलिक चर्च को फ्रांस में विशेष संरक्षण प्राप्त है .जबकि जर्मनी में प्रोटेस्टेंट चर्च वहां का अधिकृत राजधर्म है .हंगरी में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों ही चर्च के मुख्य पादरियों को राज्य से ही वेतन मिलता है और दोनों चर्च को विशेष राज्य संरक्षण प्राप्त है.
 इसी प्रकार इटली का राजधर्म रोमन कैथोलिक ईसाई है .स्पेन में रोमन कैथोलिक चर्च  राज धर्म है और चर्च की संपत्ति ,प्रशासन और प्रबंधन के विषय में कोई भी नियम बनाने का अधिकार केवल रोमन कैथोलिक चर्च की महासभा को ही प्राप्त है

 स्वीडन में  लूथेरियन ईसाइयत  राजधर्म है जबकि स्विट्जरलैंड में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों प्रकार की ईसाईयत को राज धर्म की मान्यता प्राप्त है .कोई भी गैर ईसाई व्यक्ति स्विट्जरलैंड में सेना में नहीं जा सकता और कोई राजकीय पद नहीं प्राप्त कर सकता .
यही स्थिति इटली में है ,जहां इटली में कोई भी गैर कैथोलिक ईसाई और कोई भी गैर ईसाई व्यक्ति राजकीय पद नहीं पा सकता तथा कोई भी गैर ईसाई व्यक्ति इटली में सेना में भर्ती नहीं हो सकता .संपूर्ण न्याय व्यवस्था केवल पादरियों के द्वारा ही संचालित है.

 इसी प्रकार यूरोप के अन्य छोटे-छोटे  राष्ट्रों  में भी कहीं कैथोलिक ,कहीं प्रोटेस्टेंट ,कहीं लूथेरियन और कहीं कोई अन्य चर्च विशेष राज्य-संरक्षण प्राप्त है तथा वही वहां का राजधर्म है'

 रूस में ऑर्थोडॉक्स चर्च को राजधर्म घोषित किया गया है और वहां की संपूर्ण व्यवस्था तथा न्याय व्यवस्था ऑर्थोडॉक्स चर्च की ही मान्यताओं और परंपराओं से संचालित है.
साभार
रामेश्वर मिश्रा पंकज
संकलन

No comments:

Post a Comment