Wednesday 28 February 2018

चीनी कभी मत खाना – चीनी खाने वाले खुद की जिंदगी पर ही सबसे बड़ा बोझ है।

चीनी कभी मत खाना – चीनी खाने वाले खुद की जिंदगी पर ही सबसे बड़ा बोझ है
राजिवभाई दिक्षित

    

इसके आगे का जो सूत्र है वो बहुत अच्छा है बहुत इंट्रेस्टिंग है इस देश में उसपे बहुत रिसर्च हुए है, वो ये कि आपने जो कुछ खाया है, उससे शरीर को मास, वीर्य, रक्त मल-मूत्र आदि मिलते है जो काम का है वो शरीर के अंदर जाएगा और जो काम का नहीं है वो बाहर आयेगा जैसे मास, मज्जा, वीर्य, रक्त शरीर के काम का है तो शरीर में रहेगा और मल मूत्र जो काम का नहीं है, वो शरीर से बहार आएगा. इसके साथ कुछ सूक्ष्म तत्व और Micronutrients  रहेंगे.

आपने जो कुछ खाया है इस खाने में माइक्रो नयूतिंट्स है, जिनके अलग अलग तरह के नाम आपने सुने है जैसे कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन आदि. इन्ही नमो में जो सबसे महत्वपूर्ण नाम है जिसका नाम शक्कर है. जो कुछ भी खाया है इसके खाद्य तत्व में जो सबसे तीव्र शरीर के काम आता है वो शक्कर तत्व है. इसे आप ग्लूकोज भी कह सकते है. शक्कर ये नही जो बाजार में मिलती है, ये तो चीनी है.

कभी भी चीनी ना खाए, ये 
आयुर्वेद में ऐसा एक सूत्र लिखा है कि शरीर को भोजन में से मिलने वाली जो शक्कर है, ये तेजी के साथ मिले और इसके बीच में कोई रुकावट न आये, ऐसी कोई चीज भोजन में मत मिलाये. अब ये बात उन्होंने साढ़े तीन हजार साल पहले कही है. आप देखिये कैसे महान लोग हमारे देश में हुए जिन्होंने साढ़े तीन हजार साल पहले ये कह रहे है कि भोजन के रूप में जो शक्कर आपको मिलने वाली है, ये तेजी के साथ आपको मिले और इसको मिलने में कोई रुकावट न आये ऐसी कोई वस्तु भोजन में मत खाइए.

राजीव भाई ने आज के आधुनिक विज्ञानं के हिसाब से ढूँढना शुरू किया कि हमारे आज के भोजन में ऐसी कोण कोण सी चीजे है जो भोजन के अंदर मौजूद नेचुरल शुगर को उपयोग में आने में रुकावट डाल रही है. तो परिणाम चौका देने वाले थे.

हमारे देश में एक बहुत बड़ी लेबोरेटरी है जिसका नाम CDRI (CENTRAL DRUG RESEARCH CENTER) है. राजीव भाई वहा पर गए और कई साइंटिस्ट से इस बारे में बात की कि आप बताइए कि हमारे भोजन में ऐसी कौन कौन सी चीजे है जो हमारे भोजन के प्राकृतिक शक्कर को शरीर के लिए उपयोग में आने से रोकती है तो सभी वैज्ञानिको ने एक स्वर से जिस वस्तु का नाम लिया था, उसका नाम चीनी है, हां वही चीनी जो आप चाय में डालते हो.

दोस्तों अगर आप एक सुखी और निरोगी जीवन चाहते है तो आप चीनी से इतनी घृणा करे उतना अच्छा है. ये सबसे खतरनाक चीज है. अगर यहाँ आप में से केमिस्ट्री के स्टूडेंट यहाँ हो तो इशारे के लिए बोल देता हूँ कि ये जो चीनी है ना ये जो गन्ने के रस से बनाई जाती है ये Polysaccharides है और हम जो भोजन में से ले रहे है वो सब Monosaccharide's है.
ये जो Polysaccharides है ये भोजन से मिलने वाली MonoMonosaccharide's  को डाइजेसट होने में सबसे ज्यादा रोकती है. भोजन के अंदर की जो Monosaccharide's है वो इस Polysaccharides को बदलने के लिए लगातार झगड़ा करती है और इस झगड़े में सबसे ज्यादा वास्ता होता है हमारे शरीर का जो द्रव है जिसे आप इन्सुलिन कहते है उसका. और इस इन्सुलिन को pPancreas (शरीर का एक अंग) पैदा करती है. मतलब सीधा सा ये है कि अगर आप चीनी खरीद के खायेंगे तो ये चीनी आपके शरीर में जो भोजन में से मिलने वाली नेचुरल शुगर है उसको रोकेगी और उसमे सबसे ज्यादा इन्सुलिन पैदा होगा. इन्सुलिन ज्यादा पैदा करने के लिए Pancreas को ज्यादा काम करना पड़ेगा. pPancreas अगर ज्यादा करने लगी तो लग गयी तो आपको 101% डायबटीज होगी और जिनको डायबटीज होगा, उनको हार्ट अटैक होगा,  उनको नपुंसकता होगी, आंखे भी कमजोर होने लगेगी, वो बच्चे पैदा नही कर सकते, वो कुछ नही कर सकते, उनकी जिंदगी ही अपने ऊपर भोज है.

साढ़े तीन हजार साल पहले भारत के एक महान वैज्ञानिक (महर्षि वागभट्ट) ने ये कहा था कि  भोजन में ऐसी कोई चीज मत खाइए जो प्राकृतिक भोजन को शक्कर में अवशोषित करने में दिक्कत करे. ये साढ़े तीन हजार साल बाद हम देख रहे है कि ये हमारी आँखों के सामने सिद्ध हो रहा है. अपने रसोईघर में अगर किसी चीज से घृणा करनी हो तो वो यही है चीनी. चीनी से घृणा करे, इतनी घृणा करिये की जितनी आप अपने दुश्मन से भी नही करते. अगर आपको अगर मेरी विनती स्वीकार करनी हो तो अपने रसोईघर से इस चीनी को निकाल बाहर करिये. इसे कभी मत लाइए
अब आप बोलेंगे फिर इसके स्थान पर क्या खाए. तो जवाब ये है कि गुड खाइए. आप बोलेंगे गुड और चीनी में क्या अंतर है. इन दोनों में बहुत अंतर है चीनी बनाने के लिए गन्ने के रस में 23 जहर (केमिकल) मिलाने पड़ते है, और ये सब वो जहर है जो शरीर के अंदर चले तो जाते है लेकिन बाहर नहीं निकल पाते. और गुड एक अकेला ऐसा है जो बिना किसी जहर के सीधे सीधे बनता है गन्ने के रस को गर्म करते जाओ, गुड बन जाता है. इसमे कुछ मिलाना नही पड़ता.  ज्यादा से ज्यादा उसमे दूध मिलाते है और कुछ नही मिलाना पड़ता.

चीनी चीनी बनाने के लिए इसमे कई तरह के फार्मलीन मिलाने पड़ते है फार्मलीन दुनिया का सबसे खराब जहर है जो चीनी बनाने में उपयोग होता है. बिना फार्मलीन के चीनी बनती नही सकती और फर्मिलिन कितना खराब जहर है, ये आप केमिस्ट्री की डिक्शनरी में देख सकते है. उसमे साफ लिखा है कि .0.5 मिलीग्राम फार्मलीन किसी भी आदमी को कैंसर से मार देने के लिए पर्याप्त है. इसलिए चीनी मत खाइए, गुड खाइए. आप कहेंगे कि गुड मिलता नही है. डिमांड करिये मिलने लगेगा. अर्थशास्त्र  का एक सिधांत है कि मांग करो तो सप्लाई आयेगी, डिमांड करो तो सप्लाई आयेगी.


Upsc के लिये दिल्ली की नही दिल और दिमाग की जरूरत है

  अधिकतर बच्चे 12 वी की परीक्षा के बाद दिल्ली विश्विद्यालय  , मुखर्जी नगर , करोल बाग , राजेन्द्र नगर , लक्ष्मी नगर  और अन्य इलाकों के रंगीन सपने देख रहे होंगे ... बिहार और उत्तर प्रदेश के अधिकतर बच्चे प्रकृतिवश और प्रचार प्रसार के कारण सरकारी  अधिकारी बनने के ख्वाब मन मे पाले होंगे ... परन्तु क्या दिल्ली जरूरी है या फिर दिल्ली और upsc की अवधारणा ही गलत है ।। 

ये सत्य है कि सबसे अधिक प्रशासनिक सेवा में बच्चे दिल्ली विश्विद्यालय के ही जाते है परन्तु ये भी सत्य है कि सबसे अधिक इसी विश्विद्यालय के बच्चे इस प्रतियोगिता में भाग लेते है और यकीन मानिये जो परीक्षा को क्लियर करते है वो department टॉपर भी नही होते है और न ही कोचिंग संस्थानों के धोखे में आते है और उससे भी विलक्षण बात यह है upsc की तैयारी करने वाले समूचे दुनिया का ज्ञान नही रखते है और न ही सब कुछ पढ़ते है ।।

दिल्ली आने के बाद जितना सङ्घर्ष है .. पढ़ाई करना उतना ही मुश्किल है ...और रंगीनियों में भटक गये तो फिर पूछो ही मत ..उसके अलावा मोरल प्रेशर , भावनात्मक कमजोरी ये सब अलग .. और मध्यम परिवार के बच्चे तो न सही से जी पाते है और न मर पाते है ..

Upsc करने के लिये... न कोचिंग की आवश्यकता है न बढ़िया कॉलेज की और न ही पुस्तकालय की ... जरूरत है तो बस सही तरीके से पढाई की और स्वस्थ तरीको की ...  आप अपने घर पर रहकर भी तैयारी कर सकते है वहां आपको न भोजन की चिंता , न आवास और न किसी झंझट की चिंता होगी ... एक रूम में अपना गुफा बनाओ ...और लग जाओ तपस्या में 

Unacadmy , mrunal के lectures काफी अच्छे होते है ...distractions से बचो और acadmices उतना जरूरी नही इसमे .... पुस्तको में 6 से 10 की विज्ञान और 6 से 12 सामाजिक विज्ञान पढ़ लो basic क्लियर ... तब कुछ महत्वपूर्ण पुस्तके बचती है ... बाकी ज्यादातर current affairs से आता है indian express और the hindu पढ़ो ... पूरी बूकलिस्ट भी मैं बता सकता है ...optional पेपर में graduation स्तर की जानकारी चाहिये तो विषय अनुसार पढ़ाई की जरूरत होती है ।।

बाकी अगर पैसे उड़ाने और अय्यासी करनी है तो दिल्ली से बेहतर कोई जगह नही

सरकारी बजट ऐसे समझें

मान लीजिए भारत के पास केवल 100 रुपये हैं तो ...

100 रुपये किस -किस पर खर्च किये जाते हैं ::-

24.4 रुपये ब्याज भुगतान :-
विदेशी (विश्व बैंक से लिए हुए  कर्ज से लेकर घोटालों में डकारे हुए रुपयों का भुगतान)

12.2 रुपये, रक्षा हथियार :-
विदेशी (हथियार खरीदो, युद्द की स्थिति बनाये रखो, ताकि जनता को लगे हम हथियारों में आत्म निर्भर है, इसलिए खरीदना जरूरी है)

6.8 रुपये, सब्सिडी , food पर :
बिचौलियों के घर चलाने के लिए, तुष्टिकरण की राजनीति के लिए, अल्पसंख्यक व जाति के आधार पर वोट बैंक राजनीति के लिये ।

6.4 रुपये , राज्यों के लिए :-राज्यो के राजाओं के घर और सरकार चलाने के लिए ।

6.1 पेंशन :-
उन सरकारी कर्मचारियों के लिए जो देश की नौकरी करते  वक्त देश पर बोझ थे और रिटायर होने पर समाज में बोझ बने हुये हैं। इसमें सारे High Class सोसाइटी आती है ।।

6 रुपये  ग्रामीण विकास : -ताकि ब्लॉक आफिसर , सरपंच खा सकें और गांवों से  नौकर बनाये जा सकें, तथा कम्पनियो का महंगा समान बेचा जा सके ।

5.8 रुपये यातायात पर :-ताकि कच्चे माल को विदेशियों तक पहुंचाने में कम लागत आये , और विदेशियों का समान आम लोगों तक पहचाने में भी कम लागत हो।

3.9 घरेलू कामकाज :- ??

3.7 रुपये शिक्षा पर :- ताकि अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादा नौकर तैयार हो सकें ।यदि इस शिक्षा से समझदार ही तैयार होते तो विश्व मे जितनी भी समस्या हैं उनका जिम्मेदार शिक्षित क्यों है ?

3.3 रुपये विदेशी खाद :-कम्पनियो को सीधा सब्सिडी।

2.6 रुपये कृषि भोजन पर :-
ताकि नौकर जिंदा रहे और काम करता रहे ।।

2.3 रुपये स्वास्थ्य पर:-ताकि नौकर मरे नही ।।

1.9 रुपये नौकरों के मैनेजर पर :-शहरी विकास के नाम से खर्च होता है ।।

1.8 रुपये सामाजिक विकास :-
भीख बांटते रहे ताकि लोगों को भ्रम बना रहे कि राजा और उसकी सरकार दयालु है ।

यह बड़ी लूट (देश से लिया टैक्स व देश के साधनों को बेचकर) का हिस्सा बन्दर बांट में हुआ खर्च ।।

सरकार किसी की भो , यही सबने किया है , कोई भी पार्टी हो , यह व्यवस्था नही है यह चंद राजा लोगों को पालने पोसने के लिए बनाई गई एक मानसिक गुलामी की अर्थव्यवस्था है । क्योंकि विकास के नाम पर रोड , सड़क , एलपीजी , विजली , मोटर गाड़ी , अंग्रेजी शिक्षा , मुफ्तखोरी , मशीनीकरण को कटोरे में रखकर भौतिक सुख का मक्खन निकालकर बाँटा जा रहा है  । मानव दिन प्रतिदिन संवेदन हीन होता जा रहा है , स्कूलों में पांच -पांच साल के बच्चों की हत्यायें हो रही है , 8 माह की बच्चियों के साथ रेप हो रहा है , खुलेआम गाय और मनुष्य के माँस को बेचा जा रहा है उसके इस मानवीय पतन के लिए ना कोई बजट है और नाही कोई मापदंड या लेबोटरी जहाँ विकास की बजाय मनुष्य को पुनः परिभाषित किया जा सके ।

बुद्धजीवियों की टी वी पर डिवेट देखिये , ऐसे लगता है जैसे यह कुर्सी पर नहीं किसी पेट्रोल के तसले में बैठाए गए हों ।।

Tuesday 27 February 2018

हलेलूईया

शैलेंद्र सिंह की लेखमाला जिसमें कई सारे तथ्य मिलेंगे। कई भाग हैं  इस लेखमाला के आज से प्रारंभ करते हैं - 

#हलेलूईया #भाग_1

#जोशुआ_प्रोजेक्ट_और 10/40 #विंडो 

पिछले लेख में कुछ लोगों को 10:40 विंडो और जोशुआ की कमतर जानकारी के संकेत मिलने के कारण इस पोस्ट को लिख रहा हूँ 

क्या है जोशुआ और 10/40 विंडो ???

जोशुआ एक ईसाई मिशनरीज़ द्वार चलाया जाने वाला प्रोजेक्ट है जो मुख्यतः वैटिकन चर्च द्वारा संचालित और वित्त पोषित है जिसको वहाँ की सरकारों का खुला सपोर्ट है !
मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को ईसाई बनाना उनकी भाषा में बोले तो अंधकार से प्रकाश की तरफ़ ले जाना !

इसके लिए वह लोग अन्य मत मज़हब पंथ और धर्म से जुड़े लोगों को टार्गट करते हैं इसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए १०/४० विंडो को टार्गट किया गया 

10/40 विंडो यह शब्द सुनने में थोड़ा अजीब ज़रूर है लेकिन इतना कठिन नहीं है ग्लोब पर नज़र डालेंगे तो यह काफ़ी आसान है 

10/40 विंडो शब्द सबसे पहले लूईस बुश द्वारा उछाला गया जो की पूर्वी गोलार्ध तथा पश्चिमी  में यूरोप तथा अफ़्रीका के भूभाग जो की उत्तरी ध्रुव के 10-40 डिग्री (10 डिग्री अक्षांश 40 डिग्री देशांश )में बसते हैं 

जिसमें उत्तरी अफ़्रीका और ऑल्मोस्ट पूरा एशिया (पूर्व पश्चिम उत्तर तथा दक्षिण) का भूभाग आता है जहाँ 1990 में सबसे कम ईसाई मत के लोग रहते थे अगर मोटा मोटा कहें तो विश्व की दो तिहाई जनसंख्या इसी 10/40 की विंडो में रहती है जो की ईसाई मत को नहीं मानती थी या बहुत कम मात्रा में लोग मानते थे । जिसमें अधिकतम लोग ग़रीबी और जीवन के मूल्यों से अपरिचित थे हालाँकि इसका कारण इनहि बर्बर गोरे ईसाई की संगठित लूट ही थी 

इस विंडो में रहने वाली विश्व की दो तिहाई जनसंख्या उस समय तक बौद्ध मुस्लिम और हिंदू धर्म/ पंथ को मानती थी 

अब यह इनके बारे में बेसिक जानकारी है डिटेल इससे कहीं अधिक भयानक है आप आगे पढ़ेंगे की यह कैसे ऑपरेट करते हैं और कौन कौन शामिल है इनके साथ 

तब तक के लिए बस इतना जान लीजिए कि इन लोगों द्वारा ही वर्तमान प्रधानमंत्री और तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात का वीज़ा रुकवा दिया गया था जिसमें अपने यहाँ के बहुत सारे नेता भी शामिल थे वजह थी धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ गुजरात में कड़ा क़ानून पास करना !

अगर थोड़ा बहुत भी ध्यान दिए हो तो UPA के विगत दस वर्ष के शासनकाल में हुआ मत परिवर्तन और उसके आँकड़े पर नज़र डालिए तस्वीर साफ़ होती दिखेगी 

अगली कड़ी में मोड्ज़ ऑफ़ ओपेरंडी (इनके काम करने का तरीक़ा ) 

जारी.....

#हलेलूईया_भाग2;

पहली कड़ी में केवल जोशुआ और ईसाई मतांतरण पर हल्का परिचय दिया था की इसका गठन किस प्रकार हुआ और यह काम क्या करता है तो मिलाजुलाकर मत परिवर्तन करता है लेकिन प्रश्न है कैसे इनको पैसे कौन देता है और दूसरे देशों की सरकार कुछ कर क्यूँ नहीं पाती ???

1980 में US आधारित ईवैंजेलिकल क्रिसचन (ईसाई) संगठन समूह ने भारत में  एक सुनियोजित कन्वर्ज़न (मतांतरण ) योजना सुरु की जिसको कैप्शन दिया गया AD 2000 , जिनमे अनेको संगठन सम्मिलित थे प्रमुखत: उनके नाम - 
international mission board , southern Baptist convention, Christian Aid, World Vision, Seventh Day Adventist Church and several similar enterprises .

जिनका संचालन प्रसिद्ध इवैंजेलिस्ट Pat Robertson, Billy Graham, among others इत्यादि करते थे , इन सब ने मिलकर भारत को पूर्ण ईसाई देश बनाने का संकल्प लिया और एक साथ इस काम को अंजाम देने के लिए हाथ मिलाया 

AD 2000  ज़िक्र सबसे पहले 1989 में मनीला के एक ईवैंजेलिकल सम्मेलन में हुआ जिस मिशन का नाम था Lausanne 2 , यहाँ अंतरराष्ट्रीय लेवल के सभी ईवैंजेलिकल ग्रूप को एक साथ काम करने की सहमति बनी और 1990 आते आते इसका प्रचार पसार पूरी तरह से हो गया , इनका प्रमुख उद्देश्य था की 2000 आते आते प्रत्येक व्यक्ति को चर्च और गास्पल ( सुसमाचार ) उपलब्ध कराना तथा प्रत्येक व्यक्ति को जोड़ लेना !

जब यह प्रोजेक्ट भारत के लिए लॉंच किया गया तो यह पूर्ण रूप से शोध आधारित था भारत के सभी व्यक्ति समूह की देमोग्राफ़िक अनालिसिस इकट्ठा की गई और इस काम को अंजाम दिया गया डॉक्टर के॰एस॰ सिंह के नेतृत्व में एक टीम द्वारा ,  इस प्रोजेक्ट को डॉक्टर के॰एस॰ सिंह ने "people of India " के नाम से किया था 

यह किताब 1985 में ऐन्थ्रॉपलॉजिकल ग्रूप ऑफ़ इंडिया ने पब्लिश किया था जिसमें भारत के लोगों की आर्थिक सामाजिक स्थिति का पूरा ब्योरा था ( caste , creed, class etc) . इस प्रोजेक्ट डाँटा को ईसाईयो ने और ईवैंजेलिकल ग्रूप ने भरपूर इस्तेमाल किया अपने काम को अंजाम देने के लिए !

यह प्रोजेक्ट (AD2000) बेसिक्ली नोर्थ इंडिया आधारित था जिसका केंद्र था दिल्ली उसके आस पास की स्थिति (आर्थिक) बहुत ख़राब थी लोगों की और साथ ही ईसाइयों की संख्या बहुत ही कम थी , परंतु बहुत अधिक सफलता न मिलने से निराशा हाथ लगी 

इसको पूरे विश्व से लगभग 186 देशों के  4000 नेता फ़ंडिंग करते थे जो की ईसाईयत् का प्रचार प्रसार चाहते थे और इनहि लोगों द्वारा #जोशुआ का जन्म हुआ जो की रैपिड (त्वरित गति से) कन्वर्ज़न ( मत परिवर्तन ) को अंजाम दे सके 

अगले भाग में बाक़ी कार्य प्रणाली और कुछ अन्य ख़ुलासों के साथ मिलेंगे तब तक के लिए यदि कुछ शब्दों का मतलब न पता हो तो बेझिझक कहें मैं लिख दूँगा वैसे आसान भाषा में लिखने का प्रयास किया है 

जारी.... 



रुखी त्वचा के लिए घरेलू उपाय

 अगर आपकी त्‍वचा रूखी है तो आपके लिए सर्दियों का मौसम किसी आफत से कम नही। रूखी त्‍वचा के लिए घरेलू नुस्‍खे में चेहरे की सुंदरता कायम रखने में घरेलू नुस्‍खे कारगर साबित होते हैं। घरेलू नुस्‍खों के प्रयोग करने से चेहरे पर प्राकृतिक नमी लौट आती है। आइए हम रूखी त्‍वचा के लिए घरेलू नुस्‍खों के बारे में बताते हैं। ड्राई स्किन के लिए घरेलू उपचार -  



रूखी त्वचा को आकर्षक और सुन्दर बनाने के लिए आप दूध का इस्तेमाल करें और इसका इस्तेमाल करने से आपको कोई भी नुक्सान भी नहीं होगा. आप आधा कप ठंडे दूध में Olive oil की कुछ बूंदें डालिए, उसके बाद इन दोनों को एक बोतल में डालकर डालकर अच्छे से हिला लें और इस दूध में रूई के फाहे को डूबो कर इसे अपने चेहरे पर अच्छे से लगाये. इससे आप की त्वचा में निखार आएगा और आपकी रूखी त्वचा की समस्या भी दूर हो जाएगी. और इसका इस्तेमाल रात को सोने से पहले करने काफी जल्दी फायदा मिलेगा.


 शीशम का तेल या सूरजमुखी के तेल को दूध में मिलाकर लगाने रूखी त्‍वचा की खोई हुई रंगत लौट आती है।     

बादाम का तेल और शहद बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर नाखूनों और क्यूटिकल्स में लगाकर मसाज करें। 15 मिनट बाद बाद गीले तौलिए से पोंछ लीजिए, रूखी त्‍वचा में निखार आएगा।     

तीन टेबल स्पून गुलाबजल में एक टेबल स्पून ग्लिसरीन मिलाकर हाथों और पैरों की त्वचा पर लगाएं और आधे घंटे बाद सादे पानी से धो लीजिए, रूखी त्वचा चिकनी और साफ हो जाएगी।     

आधा चम्मच शहद में एक चम्मच गुलाबजल और एक टी स्पून मिल्क पाउडर डालकर पेस्ट बनाएं। इसे चेहरे और गर्दन पर लगाएं। बीस मिनट बाद पानी से धो लें।      

अगर आपकी ज्‍यदा रूखी है और उसमें जलन होती है, तो ऐसे में 2 टेबल स्पून सिरके को एक मग पानी में मिलाएं और नहाने के बाद जहां-जहां रूखी त्‍वचा हो वहां लगाइए, फायदा होगा।    

 एक चम्मच तिल के तेल या ऑलिव ऑयल में थोडी-सी क्रीम या दूध की मलाई मिलाकर अच्छी तरह फेंट लीजिए, फिर उसे चेहरे और गर्दन पर लगाएं। 15 मिनट बाद हलका मसाज करते हुए चेहरा सादे पानी से धो लीजिए। इससे आपका चेहरा नर्म, मुलायम और चमकदार हो जाएगा।     

केले को मैश करके साफ चेहरे पर लगाएं , इस पेस्‍ट को लगाने से पहले चेहरे को अच्‍छी तरह साफ कर लीजिए। उसके बाद हलका सूखने पर सादे पानी से धो लीजिए। यह चेहरे की त्वचा को मुलायम और रेशमी बनाने में मदद करता है। 


वजन घटाने / वजन बढाने के लिये आयुर्वेदिक उपचार



मोटापा के कारण
  मोटापे के कई कारण हो सकते है। इनमें से प्रमुख है
 मोटापा और शरीर का वजन बढ़ना ऊर्जा के सेवन और ऊर्जा के उपयोग के बीच असंतुलन के कारण होता है।
अधिक चर्बीयुक्त आहार का सेवन करना भी मोटापा का कारण है।
कम व्यायाम करना और स्थिर जीवन-यापन मोटापे का प्रमुख कारण है।
असंतुलित व्यवहार औऱ मानसिक तनाव की वजह से लोग ज्यादा भोजन करने लगते हैं, जो मोटापा का कारण बनता है।
 शारीरिक क्रियाओं के सही ढंग से नहीं होने पर भी शरीर में चर्बी जमा होने लगती है।
बाल्यावस्था और युवावस्था के समय का मोटापा व्यस्क होने पर भी रह सकता है।
 हाइपोथाइरॉयडिज़्म
वजन कम करने के लिये घरेलु उपाय
1. पानी – Water
पानी हमेशा घूंट घूंट कर पीना चाहिए जैसे हम चाय या गर्म दूध पीते है, इससे मुंह में बनने वाली लार पानी के साथ पेट में जाती है जो पेट में बनने वाले एसिड को न्यूट्रलाइज़ करता है और खाना पचाने में जादा मदद मिलती है। इस उपाय से पाचन क्रिया सुधारने और मोटापा घटाने में मदद मिलती है।
फ्रीज़ में रखा ठंडा पानी नहीं पिए।
हर रोज तीन से चार लीटर पानी पिए।
सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना चाहिए
भोजन करने के आधा घंटे पहले पानी पिने पिए।
भोजन करने के बाद आधे घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए।
2. नींबू से मोटापा कैसे घटाएं –  रोजाना सुबह एक नींबू एक गिलास हल्के गर्म पानी में निचोड़ कर खाली पेट पिए। 
3. अजवाइन का पानी –
मोटापा कम करने के लिए अजवाइन 25 से 50 ग्राम की मात्रा में ले और एक गिलास पानी में भिगो कर रखे फिर सुबह इसे छान ले और थोड़ा शहद मिलाकर सुबह खाली पेट पिए।
4. शहद – Honey
शहद पानी में मिलाकर पिने से शरीर में जमा वसा कम होने लगती है जिससे मोटापा कम होता है। एक गिलास पानी उबाल ले और जब ये पानी गुनगुना हो तब इसमें 15 ग्राम शहद मिलाकर पिए।
5. ग्रीन टी से वेट लॉस करने के उपाय – Green Tea
जल्दी मोटापे को घटाने में ग्रीन टी भी काफी फायदा करती है। जो चाय हम अपनी दिनचर्या में पीते है उससे पाचन क्रिया कम होने लगती है।
*वजन बढाने  के लिये घरेलु उपाय*
अगर आप कमज़ोर हो, पतले हो, गाल पिचके हुए हैं, चेहरे पर लाली नहीं हैं तो ये उपाय करे और थोड़े दिनों में देखे अपने शरीर और चेहरे की रंगत। जिस तरह लोग मोटापे से परेशान हैं उसी तरह लोग पतलेपन से भी परेशान हैं। दुर्बल शरीर होना भी उपहास का विषय बन जाता हैं। अगर कमज़ोर व्यक्ति इन पदार्थो को अपने भोजन में शामिल करेगा तो वो कुछ ही दिनों में मोटा ताज़ा, सुन्दर और आकर्षक हो जायेगा। आइये जाने इनके बारे में।
. बादाम और मक्खन
दस बादाम भिगो कर, पीसकर, ५० ग्राम मक्खन में स्वादनुसार बूरा शक्कर मिला कर डबल रोटी में मिलाकर नित्य खाए और खाकर गर्म दूध पिए। कम से कम तीन महीने। मोटापा बढ़ जाएगा। मस्तिष्क भी तेज़ होगा। सर्दी के मौसम में यह प्रयोग विशेष लाभ देता हैं।
. अखरोट
अखरोट में आवश्यक मोनोअनसेचुरेटेड फैट होता है जो स्वस्थ कैलोरी को उच्च मात्रा में प्रदान करता है। रोज़ 20 ग्राम अखरोट खाने से वजन तेजी से प्राप्त होगा
. केला और गर्म दूध
तुरंत वजन बढाना हो तो केला खाइये। रोज़ दो या दो से अधिक केले खाने से आपका पाचन तंत्र भी अच्छा रहेगा। 3 केले खा कर ऊपर से गर्म दूध पिए। कुछ लोग केले को शेक बना कर पीते हैं, ऐसा ना करे।
. मुनक्का
15 मुनक्का नित्य रात को खाकर पानी पीकर सोएं। एक दो महीने में ही सारी दुर्बलता दूर होकर शरीर का वजन बढ़ेगा, शरीर मोटा हो जायेगा।

हाइपर और हाइपो थाइरोइड का घरेलु और सफल उपचार


आज कल की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ये समस्या आम सी हो गयी हैं, और अलोपथी में इसका कोई इलाज भी नहीं हैं, बस जीवन भर दवाई लेते रहो, और आराम कोई नहीं।

थायराइड मानव शरीर मे पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है। थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।

थॉयराइड ग्रंथि तितली के आकार की होती है जो गले में पाई जाती है। यह ग्रंथि उर्जा और पाचन की मुख्य ग्रंथि है। यह एक तरह के मास्टर लीवर की तरह है जो ऐसे जीन्स का स्राव करती है जिससे कोशिकाएं अपना कार्य ठीक प्रकार से करती हैं। इस ग्रंथि के सही तरीके से काम न कर पाने के कारण कई तरह की समस्‍यायें होती हैं। इस लेख में विस्‍तार से जानें थॉयराइड फंक्‍शन और इसके उपचार के बारे में।

थॉयराइड को साइलेंट किलर माना जाता है, क्‍योंकि इसके लक्षण व्‍यक्ति को धीरे-धीरे पता चलते हैं और जब इस बीमारी का निदान होता है तब तक देर हो चुकी होती है। इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी से इसकी शुरुआत होती है लेकिन ज्यादातर चिकित्‍सक एंटी बॉडी टेस्ट नहीं करते हैं जिससे ऑटो-इम्युनिटी दिखाई देती है।

* यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है यानि जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम करती है।

* इसके अलावा यह हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल को भी प्रभावित करती है।

*आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण का पता आसानी से नहीं चल पाता, क्योंकि गर्दन में छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। और जब तक इसे गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है।

*आखिर क्या कारण हो सकते है जिनसे थायराइड होता है*

* थायरायडिस- यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थायराइड ग्रंथि (घेंघा) है, जिसमें थायराइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।

* इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने के कारण हो सकते है।

* कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह होते हैं।

* थायराइट की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत नहीं दे पाती।

* भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल भी थायराइड की समस्या पैदा करता है।

* सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स, लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए विकिरण उपचार के कारण।

* जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव को बढ़ा देती है।

* यदि आप के परिवार में किसी को थायराइड की समस्या है तो आपको थायराइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह थायराइड का सबसे अहम कारण है।

* ग्रेव्स रोग थायराइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20 और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइराइड रोग एक ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।

* थायराइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।

* रजोनिवृत्ति भी थायराइड का कारण है क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थायराइड की वजह बनती है।

*थायराइड के लक्षण*

*कब्ज*

थाइराइड होने पर कब्ज की समस्या शुरू हो जाती है। खाना पचाने में दिक्कत होती है। साथ ही खाना आसानी से गले से नीचे नहीं उतरता। शरीर के वजन पर भी असर पड़ता है।

*हाथ-पैर ठंडे रहना*

थाइराइड होने पर आदमी के हाथ पैर हमेशा ठंडे रहते है। मानव शरीर का तापमान सामान्य यानी 98.4 डिग्री फॉरनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन फिर भी उसका शरीर और हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना- थाइराइड होने पर शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम़जोर हो जाती है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने के चलते उसे कई बीमारियां लगी रहती हैं।

*थकान*

थाइराइड की समस्या से ग्रस्त आदमी को जल्द थकान होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है। वह आलसी हो जाता है और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है।

*त्वचा का सूखना या ड्राई होना*

थाइराइड से ग्रस्त व्यक्ति की त्वचा सूखने लगती है। त्वचा में रूखापन आ जाता है। त्वचा के ऊपरी हिस्से के सेल्स की क्षति होने लगती है जिसकी वजह से त्वचा रूखी-रूखी हो जाती है।

*जुकाम होना*

थाइराइड होने पर आदमी को जुकाम होने लगता है। यह नार्मल जुकाम से अलग होता है और ठीक नहीं होता है।

*डिप्रेशन*

थाइराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है, दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है।

*बाल झड़ना*

थाइराइड होने पर आदमी के बाल झड़ने लगते हैं तथा गंजापन होने लगता है। साथ ही साथ उसके भौहों के बाल भी झड़ने लगते है।

*मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द*

मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और साथ ही साथ कमजोरी का होना भी थायराइड की समस्या के लक्षण हो सकते है।

*शारीरिक व मानसिक विकास*

थाइराइड की समस्या होने पर शारीरिक व मानसिक विकास धीमा हो जाता है।

*अति असरकारक घरेलु उपाय*

सुबह खाली पेट लौकी का जूस पिए, घर में ही गेंहू के जवारों का जूस निकाल कर पिए, इसके बाद एक गिलास पानी में हर रोज़ ३० मिली एलो वेरा जूस और २ बूँद तुलसी की डाल कर पिए, एलो वेरा जूस आपको किसी बढ़िया कंपनी का यूज़ करना होगा, जिसमे फाइबर ज़्यादा हो, सिर्फ कोरा पानी ना हो। बाजार से आज कल पांच तुलसी बहुत आ रही हैं, किसी बढ़िया कंपनी की आर्गेनिक पांच तुलसी ले। ये सब करने के आधे घंटे तक कुछ भी न खाए पिए, इस समय में आप प्राणायाम करे।

*अखरोट और बादाम है फायदेमंद*

अखरोट और बादाम में सेलेनियम नामक तत्‍व पाया जाता है जो थॉयराइड की समस्‍या के उपचार में फायदेमंद है। 1 आंउस अखरोट में 5 माइक्रोग्राम सेलेनियम होता है। अखरोट और बादाम के सेवन से थॉयराइड के कारण गले में होने वाली सूजन को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। अखरोट और बादाम सबसे अधिक फायदा हाइपोथॉयराइडिज्‍म (थॉयराइड ग्रंथि का कम एक्टिव होना) में करता है।

इसके साथ में रात को सोते समय गाय के गर्म दूध के साथ 1 चम्मच अश्वगंधा चूर्ण का सेवन करे।
इसके साथ प्राणायाम करना हैं, जिसे उज्जायी प्राणायाम बोलते हैं। इस प्राणायाम में गले को संकुचित करते हुए पुरे ज़ोर से ऊपर से श्वांस खींचनी हैं।

*सफ़ेद नमक है बहुत हानिकारक*

आज कल जो बाज़ार में सफ़ेद नमक हमको आयोडीन के नाम से खिलाया जा रहा है, चाहे वो कितनी भी बड़ी कंपनी हो, सिर्फ आम जन को मुर्ख बनाने के लिए है. नमक सिर्फ सेंधा या काला ही इस्तेमाल करें.

*काली मिर्च* 

थाइरोइड के लिए काली मिर्च का उपयोग बहुत ही फायदेमंद साबित होता है. काली मिर्च का यथा संभव नियमित उपयोग चाहे वो किसी भी प्रकार से हो, थाइरोइड के लिए बहुत ही उपयोगी है.


संख्या नामों के अर्थ

अरुण उपाध्याय जी की लेखनी से एक और अद्भुत ज्ञान - 

संख्या नामों के अर्थ-१ से १८ अंक तक की संख्याओं के नाम प्रचलित हैं जो क्रमशः १०-१० गुणा बड़े हैं। 
एक (१), दश (१०), शत (१००), सहस्र (१०००), अयुत (१०,०००), लक्ष (१००,०००), प्रयुत (१०६), कोटि (१०७), अर्बुद (१०८), अब्ज (१०९), खर्व (१०१०), निखर्व (१०११), महापद्म (१०१२), शङ्कु (१०१३), जलधि (१०१४), अन्त्य (१०१५), मध्य (१०१६), परार्द्ध (१०१७)।
कुछ उद्धरण-नवो नवो भवति जायमानः (ऋक् १०/८५/१९)
नवम् से सृष्टि आरम्भ होती है। नव अंक के बाद अगले स्थान की संख्या आरम्भ होती है।
स्थानात् स्थानं दशगुणमेकस्माद् गण्यते द्विज। ततोऽष्टादशमे भागे परार्द्धमभिधीयते। (विष्णु पुराण ६/३/४)
एकं दश शतं चैव सहस्रायुतलक्षकम्॥ प्रयुतं कोटिसंज्ञां चार्बुदमब्जं च खर्वकम्। निखर्वं च महापद्मं शङ्कुर्जलधिरेव च॥
अन्त्यं मध्यं परार्द्धं च संज्ञा दशगुणोत्तराः। क्रमादुत्क्रमतो वापि योगः कार्योऽन्तरं तथा॥ 
(बृहन्नारदीय पुराण २/५४/१२-१४)
एकदशशतसहस्रायुतलक्षप्रयुतकोटयः क्रमशः। अर्बुदमब्जं खर्वनिखर्वमहापद्मशङ्कवस्तस्मात्॥
जलधिश्चान्त्यं मध्यं परार्द्धमिति दशगुणोत्तराः संज्ञाः। संख्यायाः स्थानानां व्यवहारार्थंकृताः पूर्वैः॥
(लीलावती, परिभाषा १०-१२)
अयुतं प्रयुतं चैव शङ्कुं पद्मं तथार्बुदम्। खर्वं शंखं निखर्वं च महापद्मं च कोटयः॥
मध्यं चैव परार्द्धं च सपरं चात्र पण्यताम्। (महाभारत, सभा पर्व ६५/३-४)
यदर्धमायुषस्तस्य परार्द्धमभिधीयते। (श्रीमद् भागवत महापुराण ३/११/३३)
परार्द्धद्विगुणं यत्तु प्राकृतस्स लयो द्विज। (विष्णु पुराण ६/३/४)
लौकिके वैदिके वापि तथा सामयिकेऽपि यः। व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते॥९॥
बहुभिर्विप्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे। यत्किञ्चिद् वस्तु तत्सर्वं गणितेन विना न हि॥१६॥
(महावीराचार्य, गणित सार संग्रह १/९,१६)
एकं दश शतं च सहस्र त्वयुतनियुते तथा प्रयुतम्। कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात् स्थानं दशगुणं स्यात्।  
(आर्यभट-१, आर्यभटीय २/२)
एकं दश च शतं चाथ सहस्रमयुतं क्रमात्। नियुतं प्रयुतं कोटिरर्बुदं वृन्दमप्यथ॥५॥
खर्वो निखर्वश्च महापद्मः शङ्कुश्च वारिधिः। अन्त्यं मध्यं परार्द्धं च संख्या दशगुणोत्तराः॥६॥
(शङ्करवर्मन्, सद्रत्नमाला, १/५-६)
इमा म अग्न इष्टका धेनवः सन्तु-एका च दश च, दश च शतं च, सतं च सहस्रं च, सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च, प्रयुतं च, अर्बुदं च, न्यर्बुदं च, समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्द्धश्चैता मे अग्न इष्टका धेनवः सन्त्वमुत्रा मुष्मिँल्लोके। 
(वाजसनेयि यजुर्वेद १७/२)-इसमें प्रयुत के बाद कोटि, १० कोटि लुप्त हैं। न्यर्बुद के बाद खर्व, १० खर्व, शङ्कु नहीं हैं। इतने अवयवों (इष्टका = ईंट) से विश्व बना है। उत्पादन का साधन यज्ञ को गो कहा गया है जिसमें ३ तत्त्व हों-गति या क्रिया, स्थान, मिश्रण तथा रूपान्तर (उत्पादन)। अतः इन इष्टकों को धेनु (गो के अवयव) कहा है। 
संख्या शब्दों के अर्थ-१,२,३,....९, १०, २०, ....९०, १००, १००० आदि संख्याओं के शब्द अति प्राचीन काल से व्यवहार में हैं। उनकी धारणा के अनुसार इन शब्दों के अर्थ हैं। प्राचीन व्याकरण तथा निरुक्त के आधार पर इनके अर्थ दिये जाते हैं। निरुक्त में शब्दों की वैज्ञानिक परिभाषा के आधार अपर व्युत्पत्ति है।
एक (१)-इण गतौ (पाणिनि धातु पाठ २/३८).अ+इ+क् = इता = चला या पहुंचा हुआ। १-१ कर ही गिनती आगे बढ़ती है, या यहां से इसकी गति का आरम्भ होता है। इता अंग्रेजी में इट् (It) हो गया है। (निरुक्त ३/१०)
द्वि (२) इसका मूल है वि = विकल्प। अंग्रेजी में वि का बाइ (Bi) हो गया है जो ग्रीक, अंग्रेजी का उपसर्ग है। इसका द्विवचन रूप द्वौ का मूल शब्द है द्रुततर, अर्थात् अधिक तेज चलनेवाला। यह एक से आगे बढ़ जाता है, अगली संख्या है।
त्रि (३) द्वि में २ की तुलना है, त्रि में कई से तुलना है। यह तीर्णतम है अर्थात् १, २ दोनों को पार किया है। तीर्णतम ही संक्षेप में त्रि हो गया है। ग्रीक उपसर्ग त्रि (Tri) का भी वही अर्थ है। यह अंग्रेजी में थ्री (Three) हो गया है।
चतुर् (४)-चत्वारः = च + त्वरा (तेज). यह ३ से भी तेज है। वेदों का विभाजन त्रयी है, विभाजन के बाद मूल अथर्व भी बचा रहता है (मुण्डकोपनिषद् १/१/१-५), अतः त्रयी का अर्थ ४ वेद हैं। इसका प्रतीक पलास है जिसकी शाखा से ३ पत्ते निकलते हैं। सामान्य त्रयी मनुष्यों से यह अधिक है अतः चतुर का अर्थ बुद्धिमान् भी है। हिब्रू/ग्रीक में भी यह क्वाड्री (Quadri) = क्वा + (ड्रि) त्रि = त्रि से अधिक। इससे क्वार्ट (Quart, चतुर्थ = १/४ भाग), क्वार्टर (Quarter, चतुरस्क, ४ दीवाल से घिरा कमरा) बने हैं।
पञ्च (५)-यह पृक्त = जुड़ा हुआ से बना है। हथेली में ५ अंगुली सदा जुड़ी रहती हैं। ५ महाभूतों से विश्व बना है। समान अर्थ का शब्द है पंक्ति = पच् + क्तिन् । मूल धातु है-पचष् या पच् पाके (१/७२२)-मिलाकर पकाना, पचि (पञ्च्) व्यक्तीकरणे (१/१०५), पचि (पञ्च्) विस्तार वचने-फैलाना, पसारना। पञ्च का ग्रीक में पेण्टा (Penta) हो गया है। स्पर्श व्यञ्जनों में ५वं वर्ग प-वर्ग है। हिन्दी, बंगला, ओड़िया में प वर्ण तथा ५ अंक का चिह्न एक जैसा है।
षट् (६)-निरुक्त ४/२७) के अनुसार यह सहति (= सहन करना, दबाना) से बना है। वर्ष को भी संवत्सर इसलिये कहते हैं कि इसमें ६ ऋतुयें एक साथ रहती हैं (सम्वसन्ति ऋतवः यस्मिन् स सम्वत्सरः-तैत्तिरीय ब्राह्मण ३/८/३/३, शतपथ ब्राह्मण १/२/५/१२ आदि)। य-वर्ग का ६वां वर्ण ष है । षष्ट का सिक्स (Six) या हेक्सा (Hexa) उपसर्ग हो गया है, अरबी/पारसी में स का ह  हो जाता है।
सप्त (७)-निरुक्त (३/२६) में इसके २ मूल दिये हुये हैं। सप समवाये (पाणिनि धातुपाठ १/२८४)=पूरा समझना, मिलकर रहना। सप्त = संयुक्त। अन्य धातु है सृप्लृ गतौ (१/७०९) या सृ गतौ (१/६६९)। सर्पण = खिसकना, खिसकते हुये चलने के कारण सर्प कहा जाता है। सर्पति (=चलता है) में रेफ लुप्त होने से सप्ति = घोड़ा। ७ प्रकार के अश्व या वाहक मरुत् हैं, या सूर्य की ७ किरणें हैं, अतः सप्त =७। इससे ग्रीक उपसर्ग सेप्ट (Sept) तथा अंग्रेजी शब्द सेवेन (seven) बना है।
अष्ट (८) यह अशूङ् (अश्) व्याप्तौ संघाते च (५/१८) से बना है। इसी प्रकार का अर्थ वसु का है। वसु = वस् + उ = जो जीवित रहता है या व्याप्त है। ८ वसु शिव के भौतिक रूप हैं, अतः उनको अष्टमूर्त्ति कहा गया है। गति या वायु रूप में ११ रुद्र तथा तेज रूप में १२ आदित्य उनके रूप हैं। ज्योतिष पुस्तकों में प्रायः ८ के लिये वसु शब्द का प्रयोग है। आज भी रूसी भाषा में ८ को वसु कहते हैं। अष्ट से औक्ट (Oct) उपसर्ग तथा अंग्रेजी का एट (Eight) हुआ है।
नव (९)-मूल धातु है णु या नु स्तुतौ (२/२७) = प्रशंसा या स्तुति करना। इसी से नूतन (नया) बना है-क्षणे क्षणे  यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः। नव शब्द का अर्थ नया तथा ९ स्ंख्या दोनों है। ९ अंक के बाद अंक क्रम समाप्त हो जाता है तथा नया स्थान को ० से लिखते हैं, जहां अन्य अंक क्रम से आते हैं। अथवा नवम आयाम रन्ध्र (छेद, कमी) है जिसके कारण नयी सृष्टि होती है-नवो नवो भवति जायमानः (ऋक् १०/८५/१९)। अतः नव का अर्थ नया, ९ हुये। निरुक्त (३/१०) के अनुसार नव इन शब्दों का संक्षिप्त रूप है-न + व (-ननीया) = अनिच्छित, या न + अव(-आप्त) = अप्राप्त। नवम आयाम में रन्ध्र के भी यही २ अर्थ हैं-कमी, अनिच्छित। इससे अंग्रेजी में नानो (Nano) उपसर्ग तथा नाइन (Nine) बने हैं।   
दश (१०)-निरुक्त (३/१०) में २ व्युत्पत्तियां हैं। दसु उपक्षये (४/१०३) = नष्ट होना या नष्ट करना। अंक पद्धति का यहीं अन्त होता है तथा अंक का नया स्थान शुरु होता है।। फारसी में भी दस्त (क्षय) के २ अर्थ हैं-मुख से भोजन बाहर निकलना (वमन क्रिया या पदार्थ), हाथ (ऊपरी शरीर से निकला, या कार्य बाहर निकलना)। दस्त का कार्य दस्तकारी है। अन्य मूल धातु है-दृशिर् (दृश्) प्रेक्षणे (१/७१४)=देखना। संसार १० रूपों में देखा जाता है या दस दिशाओं में देखते हैं, अतः दश, दशा (स्थिति) दिशा, सभी १० हैं।
विंशति (२०)-निरुक्त (३/१०) के अनुसार विंशति = द्वि+दश+क्तिन् = २ दश। भास के अभिषेक नाटक, नारद स्मृति (दिव्य प्रकरण) तथा पुराणों में विंशत् शब्द का भी प्रयोग है। अंग्रेजी में भी ट्वेण्टी (Twenty) का अर्थ है टू+टेन (two ten) ।
त्रिंशत् या त्रिंशति (३०) इसी प्रकार त्रिंशत् = त्रि + दश+ क्तिन् = ३ x १०। त्रिंशति का प्रयोग भी है-पञ्चतन्त्र (५/४१, ५/५३), भरद्वाज का विमान शास्त्र (पृष्ठ ७४), वराह गृह्य सूत्र (६/२९) आदि। अंग्रेजी में भी थर्टी (Thirty) का अर्थ है थ्री टेन (3x10) ।
चत्वारिंशत् या चत्वारिंशति (४०) =४ x १०। दूसरा शब्द अंग्रेजी में फोर्टी (Forty) हो गया है।
पञ्चाशत् (५०)-पञ्च + दश = ५ x १०। अंग्रेजी में फाइव टेन = फिफ्टी (Fifty)।
षष्टि (६०) =षट् +दश+ति = ६ दश द्वारा। अंग्रेजी रूप सिक्स्टी (Sixty) प्रायः समान है।
सप्तति (७०)- सप्तति + सप्त + दश + ति = ७ दश द्वारा। अंग्रेजी में भी सेवेन्टी (70) = सेवेन टेन (7x10)।
अशीति (८०)-अष्ट की तरह इसका मूल भी है-अशूङ् (अश्) व्याप्तौ संघाते च = व्याप्ति या संहति। इसी से अश या अशन = भोजन बने हैं। वेद में अशन का अर्थ भोजन, अशीति का अर्थ अन्न है जिसका भोजन किया जाय। साशनानशने अभि (पुरुषसूक्त, ऋग्वेद १०/९०/४, वाजसनेयि यजुः ३१/४, तैत्तिरीय आरण्यक ३/१२/२) अन्नमशीतिः (शतपथ ब्राह्मण ८/५/२/१७) या अन्नमशीतयः (शतपथ ब्राह्मण ९/१/१२१)  अशीति छन्द अन्न की माप है। आधुनिक भौतिक विज्ञान में भी दृश्य जगत की कुल कण संख्या का अनुमान १०८६ है। अशीति = अष्ट + (दश) + ति= ८ दश। यह अंग्रेजी में एटी (Eighty) हो गया है।
नवति (९०)-नवति = नव + (दश) + ति = ९ दश। यह अंग्रेजी में नाइण्टी (Ninty) हो गया है।
शत (१००)- निरुक्त (३/१०) के अनुसार दश + दश (१० x १०) के २ बीच के अक्षर लेने से शद = शत हो गया है। सूर्य का तेज १०० योजन (१०० सूर्य व्यास) की दूरी पर शान्त हो जाता है, या मनुष्य भी १०० वर्ष के बाद शान्त (मृत) हो जाता है। शान्त से शत हुआ है। एषा वा यज्ञस्य मात्रा यच्छतम्। (ताण्ड्य महाब्राह्मण २०/१५/१२)-मनुष्य का यज्ञ (जीवन) १०० वर्ष चलता है, इन्द्र १०० वर्ष राज्य करने कॆ कारण शतक्रतु हैं। तद्यदेतँ शतशीर्षाणँ रुद्रमेतेनाशमयंस्तस्माच्छतशीर्षरुद्रशमनीयँ शतशीर्षरुद्रशमनीयँ ह वै तच्छतरुद्रियमित्याचक्षते परोऽक्षम्। (शतपथ ब्राह्मण ९/१/१/७) अंग्रेजी में शान्त = हण्ड = हण्डर (Hunder) या हण्ड्रेड (Hundred)।  
सहस्र (१०००)-इसका अर्थ है सह + स्र = साथ चलना। प्रायः १००० व्यक्ति एक साथ रहते हैं (गांव या नगर के मुहल्ले में १ से १० हजार तक), या सेना में १००० लोग साथ रहते या चलते हैं। आदि काल से सेना की इकाई में १००० व्यक्ति साथ रहते थे, मुगलों ने ५ या १० हजार के मनसब दिये थे। महाराष्ट्र का हजारे या असम का हजारिका उपाधि का यही अर्थ है। किसी भी व्यक्ति को प्रायः १००० लोग ही जानते हैं। इन सभी अर्थों में सहस्र का अर्थ १००० है। फारसी में सहस्र का हस्र हो गया है जिसका अर्थ प्रभाव या परिणाम है। इससे हिन्दी में हजार हुआ है। सेना की व्यवस्था करने वालों को हजारी, हजारे (महाराष्ट्र) या हजारिका (असम) कहा जाता था। सूर्य का तेज १००० व्यास तक होता है जिसे सहस्राक्ष क्षेत्र कहा गया है। पर इसका कुछ प्रभाव उससे बहुत दूर तक भी है, वह ब्रह्माण्ड (आकाशगंगा) के छोर पर भी विन्दु मात्र दीखता है, अतः सहस्र का अर्थ अनन्त भी है। गीक में हजार (मिरिअड) तक ही गिनती थी अतः अनन्त को भी मिरिअड) ही कहते थे। किसी संख्या का अनुमान भी हम प्रायः ३ दशमलव अंक तक करते हैं, अर्थात् १००० में एक की शुद्धि रखते हैं। बड़ी संख्या जैसे देश का बजट भी हजार से कम रुपयों में नहीं लिखा जाता। अतः सहस्र का अर्थ 'प्रायः' भी होता है। पुरुरवा का शासनकाल ५६ वर्ष था, उसे प्रायः ६० वर्ष (षष्टि सहस्र वर्ष) कहा गया है।  शासनकाल की एक और विधि है जिसे अंक कहा जाता है, जिसका आज भी ओडिशा के पञ्चाङ्गों में व्यवहार होता है। राजा के अभिषेक के बाद जब भाद्रपद शुक्ल द्वादशी आती है उसे शून्य मानकर वहां से गिनती आरम्भ करते हैं, अतः इस दिन को शून्य (सुनिया) कहते हैं। उसके आद के वर्षों में १, २, आदि अंक होते हैं। इस दिन वामन ने बलि से लेकर त्रिलोकी का राज्य इन्द्र को दिया था। इससे पूर्व इन्द्र राज्य-शून्य थे, उसके बाद अशून्य हुये। एक विधि में सभी अंक गिनते हैं, अन्य विधि में ०, ६ से अन्त होने वाले अंक छोड़ देते हैं। अतः पुरुरवा का ५६ वर्ष का राजत्व ६४ वर्ष भी लिखा जा सकता है जो कुछ अन्य पुराणों में है। 
   लक्ष (१०५)-मूल धातु है लक्ष दर्शनाङ्कयोः (१०/५, आत्मने पदी १०/१६४) = देखना, चिह्न देना, व्याख्या, दिखाना आदि। अतः सभी दृश्य सम्पत्ति लक्ष्मी तथा अदृश्य विमला (बिना मल का) है-
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ (उत्तरनारायण सूक्त, वाज. यजु. ३१/२२) । 
हमारे देखने की सीमा अपने आकार का प्रायः १०० हजार भाग होता है, अतः इस संख्या को लक्ष कहते हैं। मनुष्य से आरम्भ कर ७ छोटे विश्व क्रमशः १-१ लक्ष भाग छोटे हैं-
वालाग्रशतसाहस्रं तस्य भागस्य भागिनः। तस्य भागस्य भागार्द्धं तत्क्षये तु निरञ्जनम्॥ (ध्यानविन्दु उपनिषद्, ५)
मनुष्य से प्रायः लक्ष भाग का कोष (Cell) है जो जीव-विज्ञान के लिये विश्व है। उसका लक्ष भाग परमाणु है जो रसायन शास्त्र या क्वाण्टम मेकानिक्स के लिये विश्व है। पुनः उसका लक्ष भाग परमाणु की नाभि है जो न्यूक्लियर फिजिक्स के लिये विश्व है। उसका लक्ष भाग जगत् या ३ प्रकार के कण हैं-चर (हलके, Lepton), स्थाणु (भारी, Baryon), अनुपूर्वशः (दो कणों को जोड़ने वाले, Meson ) । उसका लक्ष भाग देव-असुर हैं जिनमें केवल देव से ही सृष्टि होती है, जो ४ में १ पाद है। उससे छोटे पितर, ऋषि हैं जिसका आकार १०-३५ मीटर है जो सबसे छोटी माप है। यह भौतिक विज्ञान मे प्लांक दूरी कही जाती है।
कोटि (१०७)-कोटि का अर्थ सीमा है, धनुष का छोर या छोर तक का कोण है। भारत भूमि की दक्षिणी सीमा धनुष्कोटि है। मनुष्यके लिये विश्व की सीमा पृथ्वी ग्रह है जिसका आकार हमारे आकार का १०७ गुणा है अतः १०७ को कोटि कहते हैं। पृथ्वी की सीमा सौरमण्डल उससे १०७ गुणा है। सौर मण्डल रूपी पृथ्वी (उसके गुरुत्वाकर्षण मे घूमने वाले पिण्डो) की सीमा ब्रह्माण्ड उससे १०७ गुणा है। ब्रह्माण्ड सबसे बड़ी रचना या काश्यपी पृथ्वी है जिसकी सीमा पूर्ण विश्व है जो इसी क्रम में १०७ गुणा होगा। 
रविचन्द्रमसोर्यावन् मयूखैरवभास्यते। स समुद्र सरित् शैला पृथिवी तावती स्मृता॥३॥
यावत् प्रमाणा पृथिवी विस्तार परिमण्डलात्। नभस्तावत् प्रमाणं वै व्यास मण्डलतो द्विज॥४॥ (विष्णु पुराण २/७/३-४)
सूर्य-चन्द्र का प्रकाश जहां तक है उसे पृथ्वी कहा जाता है तथा उन सभी में समुद्र, नदी, पर्वत कहे जाते हैं। पृथ्वी ग्रह में तीनों हैं। सौर मण्डल में यूरेनस तक की ग्रह कक्षा से जो क्षेत्र बनते हैं वे द्वीप हैं तथा उनके बीच के क्षेत्र समुद्र हैं। यह लोक भाग है जिसकी सीमा को लोकालोक पर्वत कहा जाता है। उसके बाद १०० कोटि योजन (योजन = पृथ्वी व्यास का १००० भाग) व्यास क्षेत्र नेपचून कक्षा तक है। ब्रह्माण्ड में भी उसका केन्द्रीय थाली आकार का घूमने वाला क्षेत्र आकाशगंगा (नदी) कहते हैं। (मनुष्य तुलना से) पृथ्वी का जो आकार (व्यास, परिधि) है, (हर) पृथ्वी के लिये उसका आकाश उतना ही बड़ा है। अर्थात्, मनुष्य से आरम्भ कर पृथ्वी, सौर मण्डल, ब्रह्माण्ड तथा विश्व क्रमशः १०७ गुणा बड़े हैं। अर्बुद (१०८) अब्ज (१०९)-निरुक्त (३/१०) में इसकी ऊत्पत्ति अम्बुद = अर्बुद कही है। अरण तथा अम्बु-दोनों का अर्थ जल है। (शतपथ ब्राह्मण १२/३/२/५-६) के अनुसार १ मुहूर्त्त में लोमगर्त्त (कोषिका, अर्बुद) की संख्या प्रायः १०८ तथा स्वेदायन (स्वेद या जल की गति) १०९ है। आजकल हिन्दी में अर्बुद (अरब) का अर्थ १०९ (१०० कोटि) होता है। अब्ज का पर्याय वृन्द है जिसका एक अर्थ जल-विन्दु  है।
पुरुषोऽयं लोक सम्मित इत्युवाच भगवान् पुनर्वसुः आत्रेयः, यावन्तो हि लोके मूर्तिमन्तो भावविशेषास्तावन्तः पुरुषे, यावन्तः पुरुषे तावन्तो लोके॥ (चरक संहिता, शारीरस्थानम् ५/२)
= पुरुष तथा लोक की माप एक ही है। लोक (विश्व) में जितने भाव-विशेष हैं उतने ही पुरुष में हैं।
एभ्यो लोमगर्त्तेभ्य ऊर्ध्वानि ज्योतींष्यान्। तद्यानि ज्योतींषिः एतानि तानि नक्षत्राणि। यावन्त्येतानि नक्षत्राणि तावन्तो लोमगर्त्ताः। (शतपथ ब्राह्मण १०/४/४/२)
= इन लोमगर्त्तों से ऊपर में ज्योति (ज्योतिष्) हैं। जितनी ज्योति हैं उतने ही नक्षत्र हैं। जितने नक्षत्र हैं उतने ही लोमगर्त्त हैं। शरीर में लोम (रोम) का गर्त्त (आधार) कोषिका हैं। आकाश में ३ प्रकार के नक्षत्र हैं-(१) सौर मण्डल की नक्षत्र कक्षा (सूर्य सिद्धान्त १२/८०) के अनुसार यह पृथ्वी (या पृथ्वी से दीखती सूर्य) कक्षा का ६० गुणा है जिसके बाद बालखिल्य आदि हैं। पर यह दीखते नहीं हैं।
भवेद् भकक्षा तीक्ष्णांशोर्भ्रमणं षष्टिताडितम्। सर्वोपरिष्टाद् भ्रमति योजनैस्तैर्भमण्डलम्॥८०॥
दीखने वाले (ज्योति) २ प्रकार के नक्षत्र हैं-(२) ब्रह्माण्ड (आकाशगंगा) में तारा, (३) सम्पूर्ण विश्व में ब्रह्माण्ड। ये दोनों विन्दु मात्र दीखते हैं। इनकी संख्या उतनी ही है जितनी शरीर में लोमगर्त्त या वर्ष में लोमगर्त्त (मुहूर्त्त का १०७ भाग) हैं।
पुरुषो वै सम्वत्सरः॥१॥ दश वै सहस्राण्यष्टौ च शतानि सम्वत्सरस्य मुहूर्त्ताः। यावन्तो मुहूर्त्तास्तावन्ति पञ्चदशकृत्वः क्षिप्राणि। यावन्ति क्षिप्राणि, तावन्ति पञ्चदशकृत्वः एतर्हीणि। यावन्त्येतर्हीणि तावन्ति पञ्चदशकृत्व इदानीनि। यावन्तीदानीनि तावन्तः पञ्चदशकृत्वः प्राणाः। यावन्तः प्राणाः तावन्तो ऽनाः। यावन्तोऽनाः तावन्तो निमेषाः। यावन्तो निमेषाः तावन्तो लोमगर्त्ताः। यावन्तो लोमगर्त्ताः तावन्ति स्वेदायनानि। यावन्ति स्वेदायनानि, तावन्त एते स्तोकाः वर्षन्ति॥५॥ एतद्ध स्म वै तद् विद्वान् आह वार्कलिः। सार्वभौमं मेघं वर्षन्त वेदाहम्। अस्य वर्षस्य स्तोकमिति॥६॥ ((शतपथ ब्राह्मण १२/३/२/५-६)
= १ वर्ष में १०,८०० मुहूर्त्त हैं। १ मुहूर्त्त दिवस (१२ घण्टा) का ३० वां भाग है। मुहूर्त्त के क्रमशः १५-१५ भाग करने पर-क्षिप्र, एतर्हि, इदानी, प्राण, अन (अक्तन), निमेष, लोमगर्त्त, स्वेदायन-होते है। जितने स्वेदायन हैं उतने ही स्तोक (जल-विन्दु) हैं। यह भारी वर्षा में जलविन्दु की संख्या है। स्वेद या जल-विन्दु का अयन (गति) उतनी दूरी तक हैं जितना प्रकाश इस काल में चलता है (प्रायः २७० मीटर)। हवा में गिरते समय उतनी दूरी तक इनका आकार बना रहता है। 
अतः १ मुहूर्त्त =१५७ लोमगर्त्त =१.७१ x १०८ (अर्बुद)
= १०८ स्वेदायन=२.५६ x १०९ (अब्ज या वृन्द)
खर्व (१०१०) निखर्व (१०११)-ऊपर के उद्धरण के अनुसार आकाश में ब्रह्माण्ड या ब्रह्माण्ड में तारा संख्या १०८०० x १०७ है, जितने वर्ष में लोमगर्त्त हैं। किन्तु यह पुरुष के रूप हैं जो भूमि से १० गुणा होता है-
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्त्वाऽत्यत्तिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥ (पुरुष सूक्त १)
अतः भूमि (ब्रह्माण्ड) में तारा संख्या इसका दशम भाग १०११ है। खर्व का अर्थ चूर्ण या कण रूप है। विश्व के लिये ब्रह्माण्ड एक कण है, ब्रह्माण्ड के लिये तारा कण है।
महापद्म (१०१२)-पृथ्वी पद्म है, सबसे बड़ी पृथ्वी ब्रह्माण्ड महा-पद्म है, इसमें १०१२ लोमगर्त्त हैं, अतः यह संख्या महापद्म है।
शङ्कु (१०१३)-शङ्कु के कई अर्थ हैं- पृथ्वी पर अक्षांश, दिशा, समय या सूर्य क्रान्ति की माप के लिये १२ अंगुल का स्तम्भ खड़ा करते हैं जिसे शङ्कु कहते हैं (त्रिप्रश्नाधिकार)। इसका आकार शीर्ष पर विन्दु मात्र है तथा यह नीचे वृत्ताकार में चौड़ा होता गया है। चौड़ा आधार स्वयं स्थिर रह सकता है, वृत्ताकार होने पर यह समान रूप से निर्द्दिष्ट विन्दु के सभी दिशा में होगा। इस स्तम्भ का आकार शङ्कु कहलाता है। ग्रहों की गति जिस कक्षा में है वह वृत्त या दीर्घवृत्त है, जो शङ्कु को समतल द्वारा काटने से बनते हैं। ब्रह्माण्ड केन्द्र के चारों तरफ तारा कक्षा भी शङ्कु-छेद कक्षा (वृत्तीय) में हैं। इसी कक्षा ने इनको धारण किया है, अतः शङ्कु द्वारा विश्व का धारण हुआ है। सबसे बड़ा शङ्कु स्वयं ब्रह्माण्ड है, जो कूर्म चक्र (ब्रह्माण्ड से १० गुणा बड़ा-आभामण्डल) के आधार पर घूम रहा है। इसका आकार पृथ्वी की तुलना में १०१३ गुणा है। शङ्कु या शङ्ख का अर्थ वृत्तीय गति भी है। इसी से शक्वरी शब्द बना है-ब्रह्माण्ड के परे अन्धकार या रात्रि है, शक्वरी = रात्रि। शक्वरी का अर्थ सकने वाला, समर्थ है-यह क्षेत्र ब्रह्माण्ड की रचना करने में समर्थ है। इसका आकार अहर्गण माप में शक्वरी छन्द में मापा जाता है जिसमें १४ x ४ = ५६ अक्षर होते हैं। ५६ अहर्गण = पृथ्वी २५३ (५६-३)। कूर्म चक्र का भी यही अर्थ है-यह करने में समर्थ है। इस क्षेत्र जैसे आकार वाला जीव भी कूर्म (कछुआ) है। यह किरण का क्षेत्र होने से इसे ब्रह्मवैवर्त्त पुराण, प्रकृति खण्ड, अध्याय ३ में गोलोक कहा गया है। 
ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड, अध्याय ३-अथाण्डं तु जलेऽतिष्टद्यावद्वै ब्रह्मणो वयः॥१॥ 
तन्मध्ये शिशुरेकश्च शतकोटिरविप्रभः॥२॥ स्थूलात्स्थूलतमः सोऽपि नाम्ना देवो महाविराट्॥४॥ 
तत ऊर्ध्वे च वैकुण्ठो ब्रह्माण्डाद् बहिरेव सः॥९॥
तदूर्ध्वे गोलकश्चैव पञ्चाशत् कोटियोजनात्॥१०॥नित्यौ गोलोक वैकुण्ठौसत्यौ शश्वदकृत्रिमौ॥१६॥
शतपथ ब्राह्मण (७/५/१/५)-स यत्कूर्मो नामा एतद्वै रूपं कृत्वा प्रजापतिः प्रजा असृजत, यदसृजत अकरोत्-तद् यद् अकरोत् तस्मात् कूर्मः॥
नरपति जयचर्या, स्वरोदय (कूर्म-चक्र)-मानेन तस्य कूर्मस्य कथयामि प्रयत्नतः। 
शङ्कोः शतसहस्राणि योजनानि वपुः स्थितम्॥
ताण्ड्य महाब्राह्मण (११/१०) शङ्कुभवत्यह्नो धृत्यै यद्वा अधृतं शङ्कुना तद्दाधार॥११॥
तद् (शङ्कु साम) उसीदन्ति इयमित्यमाहुः॥१२॥
ऐतरेय ब्राह्मण (५/७)-यदिमान् लोकान् प्रजापतिः सृष्ट्वेदं सर्वमशक्नोद् तद् शक्वरीणां शक्वरीत्वम्॥ 
जलधि (१०१४)-ब्रह्माण्ड में तारा गणों के बीच खाली आकाश में विरल पदार्थ का विस्तार वाः या वारि कहा गया है, क्योंकि इसने सभी का धारण किया है (अवाप्नोति का संक्षेप अप् या आप्)। यह वारि का क्षेत्र होने से इसके देवता वरुण हैं।
यदवृणोत् तस्माद् वाः (जलम्)-शतपथब्राह्मण (६/१/१/९)
आभिर्वा अहमिदं सर्वमाप्स्यसि यदिदं किञ्चेति तस्माद् आपोऽभवन्, तदपामत्वम् आप्नोति वै स सर्वान् कामान्। (गोपथ ब्राह्मण पूर्व १/२)
यच्च वृत्त्वा ऽतिष्ठन् तद् वरणो अभवत् तं वा एतं वरणं सन्तं वरुण इति आचक्षते परोऽक्षेण। (गोपथ ब्राह्मण पूर्व १/७)
इस अप्-मण्डल का विस्तार पृथ्वी की तुलना में १०१४ है, अतः १०१४ = जलधि। जलधि का अर्थ सागर है, १०१४ एक सामान्य सागर में जलविन्दुओं की संख्या है। कैस्पियन सागर (सबसे बड़ी झील) का आकार ५००० वर्ग कि.मी. ले सकते हैं, औसत गहराई १कि.मी.। एक जल विन्दु का आयतन १/३० घन सेण्टीमीटर है, इससे गणना की जा सकती है। आकाश का वारि-क्षेत्र (ब्रह्माण्ड) सौर पृथ्वी से १०७ गुणा है, जो पृथ्वी ग्रह का १०७ गुणा है। अतः जलधि को जैन ज्योतिष में कोड़ाकोड़ी (कोटि का वर्ग) या सागरोपम कहा गया है।  
समुद्राय त्वा वाताय स्वाहा (वाज. यजु. ३८/७)-अयं वै समुदो योऽयं (वायुः) पवतऽएतस्माद् वै समुद्रात् सर्वे देवाः सर्वाणि भूतानि समुद्रवन्ति। (शतपथ ब्राह्मण १४/२/२/२)
मनश्छन्दः... समुद्रश्छन्दः (वाज. यजु. १५/४)-मनो वै समुद्रश्छन्दः। (शतपथ ब्राह्मण ८/५/२/४)
अन्त्य (१०१५), मध्य (१०१६), परार्द्ध (१०१७)-जलधि (१०१४) की सीमा (अन्त) १०१५ है, अतः यह अन्त्य है। मध्य (१०१६) अन्त्य तथा परार्द्ध के बीच (मध्य) में आता है। पृथ्वी-व्यास का १००० भाग लेने पर १ योजन है, अतः यह आकाश का सहस्र-दल पद्म है। इस योजन में ब्रह्माण्ड का आकार १०१७ है, यह सबसे बड़ी रचना परमेष्ठी की माप है, अतः इसे परा या परार्द्ध कहते हैं। वैदिक माप में पृथ्वी परिधि का आधा अंश (७२० भाग) = ५५.५ कि.मी. १ योजन है। इस माप से ब्रह्माण्ड की कक्षा परा (१०१७) योजन का आधा है, अतः इसे परार्द्ध योजन कहते हैं। यह माप वेद में उषा के सन्दर्भ में है। उषा सूर्य से ३० धाम आगे चलती है। भारत में १५० का सन्ध्या-काल मानते हैं। यह सभी अक्षांशों के लिये अलग-अलग है, पर विषुव रेखा के लिये इसका मान स्थिर होगा जो धाम योजन या १/२ अंश का चाप होगा।
सदृशीरद्य सदृशीरिदु श्वो दीर्घं सचन्ते वरुणस्य धाम । 
अनवद्यास्त्रिंशतं योजनान्येकैका क्रतुं परियन्ति सद्यः ॥ (ऋक्, १/१२३/८)
इस माप में परम गुहा (परमेष्ठी, ब्रह्माण्ड) की माप परा (१०१७) योजन का आधा है-
ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे । 
छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः ॥ (कठोपनिषद् १/३/१)

साभार
अरुण उपाध्याय

सबसे महत्वपूर्ण "स्वयं को जानना"



एक था भिखारी ! रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा। वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा।

भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा, "तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो ?"

भिख़ारी बोला, "साहब मैं तो भिख़ारी हूँ, हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ ?"

सेठ:- जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है। मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ, अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।

तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था, वह ट्रेन से उतरा और चला गया।

इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा। सेठ के द्वारा कही गयीं बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ। लेकिन मैं तो भिखारी हूँ, किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ।लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिए केवल मांगता ही रहूँगा।

बहुत सोचने के बाद भिख़ारी ने निर्णय किया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा तो उसके बदले मे वह भी उस व्यक्ति को कुछ जरूर देगा।
लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिख़ारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है ?

इस बात को सोचते हुए दिनभर गुजरा लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला।

दूसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भीख़ के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ। उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिए।

वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा। जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता। उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे। अब भिख़ारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था।

कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं। वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था। जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे। लेकिन जब फूल बांटते बांटते ख़त्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी,अब रोज ऐसा ही चलता रहा ।

एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही सेठ ट्रेन में बैठे हैं जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी।

वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला, आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा।

शेठ ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए और भिख़ारी ने उसे  कुछ फूल  दे दिए। उस सेठ को यह बात बहुत पसंद आयी।

सेठ:- वाह क्या बात है..? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो, इतना कहकर फूल लेकर वह सेठ स्टेशन पर उतर गया।

लेकिन उस सेठ द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह बार-बार उस सेठ के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा। उसकी आँखे अब चमकने लगीं, उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है।

वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला, *मैं भिखारी नहीं हूँ, मैं तो एक व्यापारी हूँ*.

*मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ.. मैं भी अमीर बन सकता हूँ !*

लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिख़ारी पागल हो गया है, अगले दिन से वह भिख़ारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा।

एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमें से एक ने दूसरे को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा, "क्या आपने मुझे पहचाना ?"

सेठ:- "नहीं तो ! शायद हम लोग पहली बार मिल रहे हैं।

भिखारी:- सेठ जी.. आप याद कीजिए, हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं।

सेठ:- मुझे याद नहीं आ रहा, वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे ?

अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला :- 
हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे,  *मैं वही भिख़ारी हूँ जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि  वास्तव में मैं कौन हूँ।*

नतीजा यह निकला कि आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और इसी व्यापार के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ।

आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था... जिसके अनुसार  *हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं।* लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ। अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।

*भारतीय मनीषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा* -
*सोऽहं*
*शिवोहम !!*
*समझ की ही तो बात है,*
*भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी रहा ।* *उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया, व्यापारी बन गया |*

*जिस दिन हम समझ लेंगे कि मैं तो वही हूँ, मैं तो स्वयं शिव हूँ, फिर जानने समझने को रह ही क्या जाएगा ?*

*शिवोभूत्वा शिवम् यजेत*
*शिव को भजो, शिव होकर !!*
*शिव अर्थात कल्याणकारी !*
*कर भला तो हो भला !*



Monday 26 February 2018

हाथ की चक्की


आज मशीनीकरण ने कारण  महिलाओं के श्रम करने वाले कार्य ख़त्म हो गये हैं , और इसका गहरा असर हमारे जीवन पर पड़ रहा है कि अधिकांश महिलायें सिजेरियन आपरेशन , कब्ज , हार्मोन्स अनवैलेंसिंग , माइग्रेन , रसौली , अनियमित माहवारी , साइनस , नजला , थायराइड , साइटिका , पेट की चर्बी आदि से सबसे अधिक परेशान है । 
    यदि आप चाहती हैं कि भविष्य में आपको अंग्रेजी गोलियां ना खानी पड़े , तनाव ग्रस्त जीवन ना जीना पड़े तो आप अपने घर में एक की चक्की ले आइये । 
- आप जो नकली जिंदगी जी रही हैं , हर साल हजारों रुपये जिम और मेकअप पर खर्च कर रही है , पेट की चर्बी से परेशान हैं , मानसिक तनावों से ग्रस्त है , हार्ट अटैक से बचना चाहती है तो बस 10 मिनट हाथ की चक्की चलाइये । 
- पहले गांवों में विवाह-शादी के दौरान भी आस-पास के घरों में एक-एक मन गेहूं पीसने के लिए दे दिया जाता था , लेकिन उनका कभी सिजेरियन आपरेशन नहीं हुआ । 

 -  खादी ग्रामोद्योग में यह मिल सकती है , इससे चक्की बनाने वालों को रोज़गार मिलेगा और आपको बेहतरीन सेहत , बुढ़ापा अस्पताल में नहीं काटना पड़ेगा । 
- चक्की लेते वक़्त ज़्यादा मोल भाव ना करे, गरीब व्यक्ति को दान योग्य होता है ।
- पुरुष भी अगर बढे हुए पेट को कम करना चाहते है तो वह भी शर्म छोड़कर हाथ की चक्की चालायें । एक सेहत मिलेगी दूसरे ताजे पिसे हुए घर का शुद्ध आटे का फायदा जिसको खाकर भूख बढ़िया लगेगी , गैस - एसिडिटी नहीं बनेगी रोटी मुलायम , स्वाद व सुंगध से भरपूर होगी । 

      इस ताजे आंटे में सभी  आवश्यक पोषण तत्व मौजूद रहते हैं। बाजार का आटा जो बिजली की मोटर से पीसा जाता है वह गर्म होकर बेहद बारीक बनकर मैदा का रूप ले लेता है , इसके सारे पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं ।  इसकी बनी रोटी खाने पर आँतो में चिपकती है , और यह आसानी से पचता भी नहीं है । *आपका पेट बेशक भर जाये पर मन को तृप्ति नहीं मिलती* जबकि आप ताजा गेंहूँ खरीदकर आर्थिक बजत भी कर पाते हैं । जहाँ ताजे आंटे में भरपूर विटामिन्स व पोषक तत्व मिलते हैं, वहीँ मन की तृप्ति भी मिलती है ।
*भाई राजीव दीक्षित जी के व्याख्यानो से


भ्रष्ट न्यायपालिका

*भ्रष्ट न्यायपालिका*
 *"आज के नवयुवकों के लिये"*

पिछले 70 सालों से जजों की नियुक्ति में सेक्स, पैसा, ब्लैक मेल एवं दलाली बहुतायत हो रहा है ।
      
*"हर रोज दूसरों को सुधरने की नसीहत देने वाले लोकतंत्र के दोनों स्तम्भ मीडिया और न्यायपालिका खुद सुधरने को तैयार नही हैं।"*
   देश की आज़ादी के बाद जजों की नियुक्ति ब्रिटिश काल से चली आ रही " कोलेजियम प्रणाली " को ही भारत सरकार ने अपनाई.... यानि सीनियर जज अपने से छोटे अदालतों के जजों की नियुक्ति करते है। इस कोलेजियम प्रणाली में जज और कुछ वरिष्ठ वकील भी शामिल होते है। जैसे सुप्रीमकोर्ट के जज हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति करते है और हाईकोर्ट के जज जिला अदालतों के जजों की नियुक्ति करते है ।

इस प्रणाली के भ्रष्टाचार को आपने अभिषेक मनु सिंघवी की सेक्स सीडी में देखी भी होगी । सिंघवी सुप्रीमकोर्ट की कोलेजियम के सदस्य थे और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति करने का अधिकार था... उस सेक्स सीडी में कोर्ट परिसर के किसु खोपचे में ही वह वरिष्ठ वकील अनुसुइया सालवान को जज बनाने का लालच देकर उसके साथ इलू इलू करते पाए गए थे ।  

इस सिस्टम के दो उदाहरण और देखिये .......

*पहला उदाहरण --*

किसी भी राज्य के हाईकोर्ट में जज बनने की सिर्फ दो योग्यता होती है... वो भारत का नागरिक हो और 10 साल से किसी हाईकोर्ट में वकालत कर रहा हो .....या किसी राज्य का महाधिवक्ता हो ।

*"वीरभद्र सिंह जब हिमाचल में मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी को हिमाचल का महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया फिर कुछ दिनों बाद सुप्रीमकोर्ट के जजों के कोलेजियम में उन्हें हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति कर दी और उन्हें गुजरात हाईकोर्ट में जज बनाकर भेज दिया गया।"*

तब कांग्रेस , गुजरात दंगो के बहाने मोदी को फंसाना चाहती थी और अभिलाषा कुमारी ने जज की हैसियत से कई निर्णय मोदी के खिलाफ दिया ...हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में उसे बदल दिया था।

*दूसरा उदाहरण....*

*"1990 में जब लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे तब कट्टरपंथी मुस्लिम आफ़ताब आलम को हाईकोर्ट का जज बनाया गया.... बाद में उन्हे प्रोमोशन देकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया.... उनकी नरेंद्र मोदी से इतनी दुश्मनी थी कि तीस्ता शीतलवाड़ और मुकुल सिन्हा गुजरात के हर मामले को इनकी ही बेंच में अपील करते थे... इन्होने नरेद्र मोदी को फँसाने के लिए अपना एक मिशन बना लिया था।"*

बाद में आठ रिटायर जजों ने जस्टिस एम बी सोनी की अध्यक्षता में सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो के किसी भी मामलो की सुनवाई से दूर रखने की अपील की थी.... जस्टिस सोनी ने आफ़ताब आलम के दिए 12 फैसलों का डिटेल में अध्ययन करके उसे सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को दिया था और साबित किया था की आफ़ताब आलम चूँकि मुस्लिम है इसलिए उनके हर फैसले में भेदभाव स्पष्ट नजर आ रहा है।

जजों के चुनाव के लिए कोलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नई विशेष प्रणाली की जरूरत महसूस की जा रही थी। जब मोदी की सरकार आई तो तीन महीने बाद ही संविधान का संशोधन ( 99 वाँ संशोधन) करके एक कमीशन बनाया गया जिसका नाम दिया गया National Judicial Appointments Commission (NJAC)
इस कमीशन के तहत कुल छः लोग मिलकर जजों की नियुक्ति कर सकते थे।

A- इसमें एक सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश ,
B- सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज जो मुख्य न्यायाधीश से ठीक नीचे हों ,
C- भारत सरकार का कानून एवं न्याय मंत्री ,
D- और दो ऐसे चयनित व्यक्ति जिसे तीन लोग मिलकर चुनेंगे। ( प्रधानमंत्री , मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष का नेता) ।

परंतु एक बड़ी बात तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कमीशन को रद्द कर दिया , वैसे इसकी उम्मीद भी की जा रही थी।
इस वाकये को न्यायपालिका एवं संसद के बीच टकराव के रूप में देखा जाने लगा .... भारतीय लोकतंत्र पर सुप्रीम कोर्ट के कुठाराघात के रूप में इसे लिया गया।
यह कानून संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था जिसे 20 राज्यों की विधानसभा ने भी अपनी मंजूरी दी थी।
सुप्रीम कोर्ट यह भूल गया थी कि जिस सरकार ने इस कानून को पारित करवाया है उसे देश की जनता ने पूर्ण बहुमत से चुना है।
सिर्फ चार जज बैठकर करोड़ों लोगों की इच्छाओं का दमन कैसे कर सकते हैं ?
क्या सुप्रीम कोर्ट इतना ताकतवर हो सकता है कि वह लोकतंत्र में जनमानस की आकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है ?

जब संविधान की खामियों को देश की जनता परिमार्जित कर सकती है तो न्यायपालिका की खामियों को क्यों नहीं कर सकती ?
यदि NJAC को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक कह सकता है तो इससे ज्यादा असंवैधानिक तो कोलेजियम सिस्टम है जिसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही ईमानदारी ?
कांग्रेसी सरकारों को इस कोलेजियम से कोई दिक्कत नहीं रही क्योंकि उन्हें पारदर्शिता की आवश्यकता थी ही नहीं।

मोदी सरकार ने एक कोशिश की थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उस कमीशन को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।
शूचिता एवं पारदर्शिता का दंभ भरने वाले सुप्रीम कोर्ट को तो यह करना चाहिए था कि इस नये कानून (NJAC) को कुछ समय तक चलने देना चाहिए था...ताकि इसके लाभ हानि का पता चलता , खामियाँ यदि होती तो उसे दूर किया जा सकता था ...परंतु ऐसा नहीं हुआ।

  *"जज अपनी नियुक्ति खुद करे ऐसा विश्व में कहीं नहीं होता है सिवाय भारत के। क्या कुछ सीनियर IAS आॅफिसर मिलकर नये IAS की नियुक्ति कर सकते हैं ? क्या कुछ सीनियर प्रोफेसर मिलकर नये प्रोफेसर की नियुक्ति कर सकते हैं ? यदि नहीं तो जजों की नियुक्ति जजों द्वारा क्यों की जानी चाहिए ?"*

      
विशेष वर्ग का हिमायती सुप्रीम कोर्ट आज गौरक्षकों, जल्लीकट्टू , दही हांडी के खिलाफ निर्णय देता है ।  यही सुप्रीम कोर्ट दस बजे रात के बाद डांडिया बंद करवाता है ,  दीपावली में देर रात पटाखे को बैन करता है।

   *लेकिन .. सुप्रीम कोर्ट आतंकियों की सुनवाई  रात दो बजे अदालत खुलवाता है , कभी पत्थरबाजी को बैन नहीं करता ,  गोमांश खाने वालों पर बैन नहीं लगाता है ....ईद - बकरीद पर पर कुर्बानी को बैन नहीं करता है .....मुस्लिम महिलाओं के शोषण के खिलाफ तीन तलाक को बैन नहीं करता है।*

कल तो सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि तीन तलाक का मुद्दा यदि मजहब का है तो वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह क्या बात हुई ? आधी मुस्लिम आबादी की जिंदगी नर्क बनी हुई है और आपको यह मुद्दा मजहबी दिखता है ? धिक्कार है आपके उपर ....।

*"अभिषेक मनु सिंघवी के विडियो को सोशल मीडिया , यू ट्यूब से हटाने का आदेश देते हो कि न्यायपालिका की बदनामी ना हो ? ....पर क्यों ऐसा ? ...क्यों छुपाते हो अपनी कमजोरी ?"*

जस्टिस कर्णन जैसे पागल और टूच्चे जजों को नियुक्त करके  एवं बाद में छः माह के लिए कैद की सजा सुनाने की सुप्रीम कोर्ट को आवश्यकता क्यों पड़नी चाहिए ?
अभिषेक मनु सिंघवी जैसे अय्याशों को जजों की नियुक्ति का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?
क्या सुप्रीम कोर्ट जवाब देगा ..?
वंदे मातरम् !!

पीलिया का अचूक इलाज


1. 50ग्राम मूली के पत्तों के रस में थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सुबह शाम सेवन कराने से पीलिया नष्ट होता है।
2. 250ग्राम मट्ठे में 8 कालीमिर्च पीसकर मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग में बहुत लाभ होता है ।
3. सफेद प्याज का रस 10ग्राम,हल्दी  का चूर्ण 1ग्राम और 10ग्राम गुड़ मिला कर सेवन करने से पीलिया रोग मे लाभ होता है ।
4.गिलोय का रस 5ग्राम सुबह-शाम पीने से लीवर की विकृति नष्ट होने से पीलिया में बहुत लाभ होता है ।
5. संतरे का रस लगभग 200ग्राम पीने से पीलिया बहुत जल्दी ठीक होता है ।
6.गन्ने के रस में एक गेहूँ के दाने के बराबर चूना मिलाकर रोज पीने से पीलिया बहुत जल्दी ठीक होता है ।
7. अनार के 100ग्राम रस में 10ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पीलिया में बहुत लाभ होता है ।
8. चुकंदर के 100ग्राम रस में थोड़ा सा नींबू का रस मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से पीलिया नष्ट होता है ।
            
9.पीलिया रोग में एक रत्ती *बंगभस्म* लेकर एक छोटी चम्मच दूध की मलाई पर डालकर प्रातः काल खा लें और दोपहर के बाद तीन चार बजे थोड़ी सी ईसबगोल की भूसी फाँक कर ऊपर एक गिलास नींबू का शर्बत पी लें । दो तीन दिनों में ही पीलिया दूर हो जायेगा।इसका प्रयोग केवल तीन दिन का है।
   यह दवा पंसारियों के यहाँ मिल जायेंगी । बंग भस्म शुद्ध होनी चाहिए ।

स्वास्थ्य कथा के सबसे अच्छे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

आर्थिक केंद्र रहे हैं हमारे मंदिर

आर्थिक केंद्र रहे हैं हमारे मंदिर

लेखक:- अजीत कुमार
लेखक सेंटर फॉर सिविलाइजेशनल स्टडीज में शोधार्थी हैं।

हिंदू मंदिर सदा से ही समाज तथा भारतीय सभ्यता के केंद्रबिंदु के रूप में स्थापित रहे हैं। मंदिर आध्यात्मिक तथा अन्य धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ विविध प्रकार के समाजोपयोगी गतिविधियों के भी प्रमुख केंद्र रहे हैं। इतिहास बताता है कि प्राचीन काल से लेकर अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी तक ये मंदिर ज्ञान-विज्ञान, कला आदि के साथ-साथ महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों के संचालक तथा नियामक थे। भारत के आर्थिक इतिहास में मंदिरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह तो हम आज भी देख सकते हैं कि हमारे मंदिर अकूत धन-सम्पदा के भंडार हैं। तिरूपति मंदिर की वार्षिक आय की बात हो या फिर प्राचीन पद्मनाभ मंदिर से मिला खजाना हो, मंदिरों में धन का प्रवाह तब से लेकर आज तक अविरल चलता आ रहा है।

प्राचीन तथा मध्यकाल में मंदिर बैंक की भूमिका भी निभाते रहे हैं। लोग मंदिरों में अपनी बहुमूल्य वस्तुएं तथा पैसा जमा करते थे। मंदिरों के प्रति अगाध निष्ठा तथा मंदिर के न्यासियों के द्वारा अपनी भूमिका का समुचित निर्वहन के कारण लोग अपनी जमा-पूंजी को वहां सबसे अधिक सुरक्षित समझते थे। व्यापारिक निगम भी मंदिरों के रख-रखाव तथा सुचारू रूप से सञचालन के लिए नियमित अंतराल पर दान देते रहते थे। राजा भी अपने कोष को मंदिर में सुरक्षित रखते थे तथा आपातकाल में मंदिरों से उधार भी लिया करते थे। कौटिल्य ने अर्थशास्त्रा में देवताध्यक्ष का विधान किया है तथा मंदिरों की सम्पदा को राज सम्पदा के रूप में रखा है। आपातकाल में राजा उस सम्पदा का प्रयोग कर सकता था। दक्षिण भारत में मंदिर कृषि-विकास सिंचाई आदि के महत्वपूर्ण स्तम्भ थे। चोल और विजयनगर साम्राज्य में कृषि-विकास तथा सिंचाई योजना के लिए अलग से विभाग नहीं थे। ऐसी योजनायें मंदिरों तथा अन्य स्वतंत्रा इकाइयों द्वारा संचलित की जाती थी। इसी दौरान स्थानीय क्षेत्रों के विकास में मंदिरों द्वारा भूमिका निभाए जाने का वर्णन हमें अभिलेखों से प्राप्त होता है।

के वी रमण श्री वरदराजस्वामी मंदिर, कांची पर वर्ष 1975 के अपने शोध पत्रा में मंदिर को जमींदार के रूप में तथा निर्धनों को राहत पहुंचाने वाली संस्था के रूप में भी स्थापित करते हैं। बड़े मंदिर सैकड़ों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करते रहे हैं। के वी रमण अपने शोध पत्रा में मंदिर से जुड़े राजमिस्त्राी, कुम्हार, गाड़ीवान, मशालवाहक, रसोइयों तथा लुहारों की जुड़े रहने की बात करते हैं। सहस्रबाहु मंदिर से प्राप्त अभिलेख बड़े स्तर पर लकड़ी के काम करने वाले, अभियंताओं तथा अनेक प्रकार के लोगो की नियुक्ति को प्रमाणित करते हैं। इसी प्रकार आर नागास्वामी अपने शोधपत्रा में दक्षिण भारतीय मंदिरों को प्रमुख नियोक्ता के रूप में स्थापित करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मंदिरों में केवल पूजा-पाठ ही नहीं हुआ करता थे, अन्य आर्थिक गतिविधियां भी चलती थीं।

सिंथिया टैलबोट अपने शोधपत्रा में दक्षिण भारतीय मंदिरों को शिल्पियों तथा कलाकारों को रोजगार प्रदान करने वाली तथा किसानों और चरवाहों को जमीन और ऋण प्रदान करने वाली संस्था के रूप में स्थापित करते हैं। मंदिरों की आय के प्रमुख स्रोत राजाओं, व्यापारियों तथा किसानों से प्राप्त होने वाला दान रहा है।

उल्लेखनीय है कि भारत कृषि और वाणिज्यप्रधान देश होने के साथ-साथ धर्मप्रधान देश भी है। यहाँ हर महीने कुछ ऐसे व्रत-त्यौहार होते हैं जिनमे सब लोग अपने सामर्थ्य के अनुरूप दान करते हैं। प्रख्यात आर्थिक इतिहासकार अंगस मेडीसन के अनुसार प्राचीन काल से अट्ठारहवीं शताब्दी तक भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थअव्यवस्था रहा है। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है। भारत में एक प्रचलित कहावत है 'सबै भूमि गोपाल की' अर्थात यहाँ लोग अपने को सम्पति का मालिक नहीं बल्कि उसका न्यासी अथवा देख रेख करने वाला मानते रहे हैं और अपनी इसी वृति के कारण दान भी बहुत उदारता से करते रहे हैं। इसके कारण मंदिरों में अकूत संपत्ति जमा होती गई।

मंदिरों को मिलने वाले दान में मुख्यतः जमीन, स्वर्ण आदि आभूषण तथा अनाज रहे हैं। साहित्य के अलावा अभिलेखों से भी हमें मंदिरों को मिलाने वाले दान की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। एम जी एस नारायणन और केशव वेलुठाट के अनुसार दक्षिण भारतीय मंदिर स्वर्ण, रजत तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं के गोदाम बन चुके थे। राजा मंदिरों को दानस्वरुप जमीन या गाँव प्रदान करते थे जो मंदिरों की नियमित आय के साधन थे। दक्षिण भारत के एक-एक मंदिर के पास 150 से 300 गावों की जमींदारी थी। मंदिर प्रबंधन जमीन को किसानो को खेती करने के लिए जमीन देता था और उपज का एक निश्चित भाग हर फसल की उपज के बाद किसान से ले लेता था। यही मंदिरों की आय का एक नियमित तथा महत्वपूर्ण भाग था।

भारतीय मंदिर अपने आय का बहुतांश कृषि विकास, सिंचाई योजनाओं तथा अन्य आर्थिक क्रियाओं में निवेश करते थे। तिरुपति मंदिर इसका एक प्रमुख उदहारण है जिसने विजयनगर साम्राज्य के काल में अनुदान के रूप में प्राप्त संसाधनों का प्रयोग कृषि के विकास के लिए किया था। तिरुपति मंदिर द्वारा सिंचाई योजनाओं को सुचारु रूप से चलाने में विजयनगर साम्राज्य से प्राप्त राजकीय अनुदान का महत्वपूर्ण योगदान था।

वर्ष 1429 के एक अभिलेख के अनुसार विजयनगर सम्राट देवराय द्वितीय ने विक्रमादित्यमंगला नामक गाँव तिरुपति मंदिर को दान किया था जिसके राजस्व से मंदिर के धार्मिक कार्य सुचारू रूप से चलते रहे। बाद में 1495 में के रामानुजम अयंगार ने अपने कुल अनुदान 65 हजार पन्नम में से तेरह हजार पांच सौ पन्नम विक्रमादित्यमंगलम गाँव में सिंचाई योजना पर काम करने लिए दिया था।

इस प्रकार हम पाते हैं कि सिंचाई योजनाओं के माध्यम से कृषि योग्य भूमि का विकास भारतीय मंदिरों विशेषकर दक्षिण भारतीय मंदिरों के अनेक आर्थिक क्रियाकलापों में से एक था। अपने प्रभाव क्षेत्रा में हर मंदिर एक महत्वपूर्ण आर्थिक संस्था होता था। प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार नीलकंठ शास्त्राी के अनुसार मंदिर एक जमींदार, नियोक्ता, वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोक्ता तथा एक बैंक की भूमिका निभाता था। ग्यारहवीं सदी के एक अभिलेख के अनुसार शिक्षकों और पुजारियों के अतिरिक्त तंजौर मंदिर में 609 कर्मचारी कार्यरत थे। एक अन्य अभिलेख के अनुसार विजयनगर सम्राज्य के काल में तुलनात्मक रूप से एक छोटे मंदिर में 370 कर्मचारी कार्यरत थे। मंदिर स्थानीय उत्पादों के बड़े उपभोक्ता भी थे। अनेक अभिलेखों में इस बात के वर्णन हैं कि मंदिर व्यक्तिविशेष या ग्राम समाज को ऋण भी उपलब्ध कराता था तथा बदले में उनकी जमीन बंधक के रूप में रखता था। उसकी उपज ब्याज के रूप में प्रयोग करता था।

इस प्रकार हम पाते हैं कि मंदिरों के अन्य स्थानीय इकाइयों से भी गहरे आर्थिक संबध थे, न केवल दान प्राप्तकर्ता के रूप में बल्कि जमींदार, नियोक्ता, उपभोक्ता, तथा ऋण प्रदान करने वाली एक सुदृढ़ आर्थिक संस्था के रूप में भी। मंदिर धार्मिक केंद्र होने के साथ-साथ मजबूत आर्थिक केंद्र भी थे।

---------/--------------------

एक जिग्यासा :
ईस्ट इंडिया कंपनी  और ब्रिटिस सरकार के हिंदुस्तान में राज्य कायम करने के पूर्व भारत में जो टैक्स सरकार वसूलती थी उसका एक हिस्सा लोकल म्युनिसिपलिटी को जन सामान्य की जरूरतों जैसे कुए बावड़ियों का निर्माण एवं देखरेख में तथा मन्दिर और उसके परिसर में चल रहे विद्यालयों की देख रेख में खर्च किया जाता था ।
जब ब्रिटिशर्स ने टैक्स बटोरना शुरू किया तो इस सिस्टम को खत्म किया और मंदिर को अलॉट प्रोपेर्टीज़ पर भी कबजा जमाया ।
लेकिन क्या उन्होंने मस्जिदों और वकफबोर्ड की प्रॉपर्टीज के साथ भी यही किया ?

✍🏻
डॉ त्रिभुवन सिंह

---------

आपकी जमीन के चकबंदी के जो नियम कानून होते हैं वो कब के हैं ? किसने बनाये थे ?

नहीं पता ?

ओह !! कोई बात नहीं चलिए हम बता देते हैं | जिल्लेइलाही अकबर के दरबार के नौ रत्नों के बारे में तो सुना ही होगा ? उनके नव-रत्नों में से एक थे राजा टोडरमल | भूमि सुधार के, दखल या लेन-देन के ज्यादातर नियम उनके बनाये हुए हैं | भारत में अब भी वही भूमि कानून इस्तेमाल होते हैं | ज्यादातर जगहों पर मामूली सुधारों के साथ वही नियम चलते हैं |

भारत पर ऐसे नियम कानूनों का असर देखना हो तो थोड़ा पीछे चलना होगा | भारत में शिया मुसलमानों कि गिनती कम है, ज्यादातर सुन्नी होते हैं | उत्तर प्रदेश में शिया मुस्लिमों कि कुछ आबादी है | हमारी कहानी भी वहीँ की है | ये कहानी काफ़ी पहले शुरू हुई थी | नहीं, हमारे दादा परदादा के ज़माने कि नहीं, ये उस से भी पुरानी कहानी है |

वाराणसी में एक जगह है दोषीपुरा, उस ज़माने में भारत पर फिरंगी हुकूमत थी और लार्ड लीटन गवर्नर जनरल थे | जिसे आज आप भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं, उसे बीते कुछ ही साल हुए थे और उसी दौर में करीब दो एकड़ जमीन को लेकर दोषिपुरा के शिया-सुन्नी समुदाय में विवाद छिड गया | ये मुकदमा 1878 में शुरू हुआ था |

मामला कुछ यूँ था कि उस ज़माने में बनारस के महाराज कि जमीनें थी और उसमें से महाराज ने कुछ जमीन शिया मुसलमानों को दान कर दी | इस वजह से अब शिया उस जमीन पर अपना हक़ मानते हैं | लेकिन सुन्नी मुसलमानों का कहना है कि उस जमीन में सुन्नियों का कब्रिस्तान है | इसलिए वो ये जमीन शिया मुसलमानों को देने को तैयार नहीं |

दर्ज़नो अदालतों से गुजर चुके इस मामले का आज तक कोई हल नहीं निकला है | लगभग सभी अदालतों ने इस जमीन को शिया मुसलमानों का माना है | 1976 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा | फिर 3 नवम्बर 1981 को सुप्रीम कोर्ट ने भी शिया मुसलमानों के हक़ में फैसला सुना दिया | अदालत ने हुक्म दिया की संपत्ति के चारों तरफ एक दिवार खड़ी कर दी जाये और कब्रें कहीं और हटा दी जाए |

सुन्नी कब्र हटाने को राज़ी नहीं हुए | उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगे फैलने का खतरा बता कर शिया मुसलमानों कि मदद से इनकार कर दिया |

दोबारा जब अदालत का दरवाजा खटखटाया गया तो सर्वोच्च न्यायलय ने पूछा कि उसके हुक्म कि तामील क्यों नहीं हुई है ? उत्तर प्रदेश सरकार ने बात चीत के जरिये मामले को सुलझाने का प्रस्ताव रखा | जहाँ शिया कहते हैं कि जब मुमताज़ महल कि कब्र बुरहानपुर से हटाकर आगरा के ताजमहल में ले जाई जा सकती है तो फिर ये दो कब्रें क्यों नहीं हटाई जा सकती ? उधर सुन्नी कहते हैं कि इस जमीन का इस्तेमाल दोनों समुदाय मिलकर कर लें | हम वापिस नहीं देंगे |

शिया इस इलाके में गिनती में बहुत कम हैं | मगर उन्हें शायद ऐसी अदालतों पर भरोसा है जो पांच पांच सौ साल पुराने कानूनों पर चलती हैं ! समुदायों के बीच ये तनाव जहाँ डेढ़ सौ साल से जारी है, वहीँ उसी सर ज़मीने हिन्द कि सबसे ऊँची अदालतों में कार्यवाही अगली तारीख तक के लिए फिर से मुल्तवी की जाती है ...


मंदिर हिन्दुओं के नहीं होते | भारत में मंदिर सरकारी होते हैं | तमिलनाडु में हिन्दू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट (TN HR&CE) के जरिये मंदिरों पर कब्ज़ा किया गया है | ये अन्य मजहबों-रिलिजन पर लागू नहीं होता, इस से सिर्फ हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्ज़ा होता है |

TN HR&CE मंदिरों के करीब 4.28 लाख एकड़ खेती लायक जमीन, 22,600 भवन और 33,600 "स्थलों" पर नियंत्रण करता है | वर्ष 2011 के दौरान इन संपत्तियों से कुल किराया होना था 303.64 करोड़ रुपये | सरकार ने यानि TN HR&CE ने इसमें से सिर्फ 36.04 करोड़ इकठ्ठा किया |

बाकी की रकम कहाँ जाती है पता नहीं | ये जो रकम इकठ्ठा होती है उसमें से कोई हिन्दू हितों के लिए खर्च की जाती है, या नहीं की जाती ये भी मालूम नहीं | आपके आस पास का कोई प्रसिद्ध मंदिर सोचिये और बताइये किसके नियंत्रण में है ?

मंदिर में दिया दान-चढ़ावा किसे जाता है, पंडित जी को या सरकार को ?


आनन्द कुमार

Sunday 25 February 2018

Be a better heeler with Tcm diagnosis

   ‎Tcm diagnosis 
   
   ‎Thorax​ ​and​ ​abdomen
- chest pain (Heart Blood Stasis due to Yang deficiency)
- chest pain with cough and copious yellow sputum (Lung Heat)
- hypochondriac distension (Liver Qi stagnation, if severe – Liver Blood Stasis)

- epigastric pain (food retention, Stomach Heat)
- dull epigastric pain (deficient Cold of Stomach)
- epigastric fullness (Spleen deficiency or Damp)
- low abdominal pain (internal Cold, Liver Qi stagnation, Liver Blood stagnation,
Damp/Heat, intestinal or uterine Blood Stasis)
- hypogastric pain (Damp/Heat in Bladder, or Liver Fire moving down to the Bladder)
Diet​ ​&​ ​appetite,​ ​&​ ​taste
- discomfort relieved by eating (deficiency), aggravated by eating (excess)
- no appetite (Spleen deficiency)
- always hungry (Stomach Heat)
- fullness and bloating after meals (food retention)
- prefer hot temperature foods (Cold)
- prefer cold temperature foods (Heat)

Teste
- bitter taste (Liver or Heart Heat)
- sweet taste (Spleen deficiency, or Damp/Heat)
- sour taste (food retention, or Liver Stomach disharmony)
- salty taste (Kidney Yin deficiency)
- lack of taste (Spleen deficiency)
- pungent taste (Lung Heat)

Vomit
- sour vomit (Stomach insult Liver)
- bitter vomit (Liver Gallbladder Heat)
- clear watery (Stomach Cold with fluid retention)
- soon after eating (Heat)
For all diagnosis related post contect
Hr Deepak Raj simple
8083299134,7004782073(WhatsApp or call)

‎Face and mouth

Eyes​ 

 -red inner corners (Heart Fire)- red sclera (Lung Heat)

- yellow sclera (Damp/Heat)

- whole eye red painful swollen (Wind/Heat, or Liver Fire)

- pale white corners & lids (Blood deficiency)

- dark or swelling under the eye 'bags' (Kidney deficiency)

Nose

- green-blue (abdominal pain)

- yellow (Damp/Heat)

- white (Blood deficiency)

- red (Lung Spleen Heat)

- grey (impairment of water movement)

- dry tip (Stomach or Large Intestine Heat)

- dry black (Toxic Fire)

- clear discharge (Cold)

- yellow discharge (Heat)

Ears

- blue-black (pain)

- white (Cold)

- lobes dry withered black (Kidney deficiency – prognosis bad)

- lobes shiny and moist (prognosis good)

- lobes long and full (strong Kidneys)

- lobes thin and small (weak Kidneys)

- infection with pain (Fire in Shaoyang meridians)

Mouth​ ​&​ ​lips

- pale lips (Blood or Yang deficiency)

- red dry lips (Spleen Stomach Heat)

- purple-bluish lips (Blood Stasis)

- mouth always slightly open (deficiency)

- breathe through mouth (Lung Qi deficiency)

- green around mouth (Liver Blood Stasis, and Wood overact on Earth)

Teeth​ ​and​ ​gums

- dry teeth (Kidney Yin deficiency, or Yangming Heat)

- poor tooth development (Kidney deficiency)

- swollen painful gums with possible bleeding (Stomach Heat, if no pain deficiency Heat)

- pale gums (Blood deficiency)

Throat

- pain, redness, swelling (Wind/Heat, or Stomach Fire)

- sore and dry, not red and swollen

(Kidney Yin deficiency ,Heat)

Nails,limbs and skin

Nails​ ​and​ ​limbs

- pale nails (Blood deficiency)

- purple-blue (Liver Blood Stasis)

- dry lifeless skin around the wrists and ankles (body fluid deficiency)

- in children, the first joint on the index finger is the 'gate of wind', the second is the 'gate

of Qi', and the third is the 'gate of life'.

- after rubbing the finger towards the body…

- veins appear only beyond the 'gate of wind'

(mild, exterior invasion)

- veins appear beyond the 'gate of Qi'

(internal, more serious)

- veins appear beyond the 'gate of life'

(serious life threatening disease)

- blue veins (Cold)

- red veins (Heat)

Skin

- dry (Blood deficiency)

- itchiness (Wind)

- pitting edema (Kidney Yang deficiency)

- non-pitting edema (Qi stagnation)

- bright clear yellow Yang jaundice (Damp/Heat)

- dull yellow Yin jaundice (Damp/Cold)

     

Meridian​ ​diagnosis

The following symptoms are signs which apply only to the specific meridian, organ symptoms have been left out. In addition to the following clinical manifestations, any pain, heat or coldness, numbness, stiffness, knots, tingling, aches, redness, or any other sign along the course of a meridian is also an obvious meridian symptom.

Lungs​ (hand Taiyin) → External pathogenic invasion, accumulation of Lung heat: i.e.fever, aversion to cold, stuffiness of the chest, pain in the clavicle, shoulders & arms.

Large​ ​Intestine​ (hand Yangming) → Wind/cold/damp blockage, accumulation of heat:i.e. sore throat, toothache, epistaxis (nosebleed), runny nose, swollen & painful gums,swollen eyes

Stomach​ (foot Yangming) → External pathogenic invasion, Stomach heat rebelling: i.e.pain in the eyes, epistaxis (nosebleed), swelling of neck, facial paralysis, cold legs & feet

Spleen​ (foot Taiyin) → Wind/cold/damp, heat rebelling: i.e. vaginal discharge,weakness of the leg muscles, tongue stiffness/pain

Heart​ (hand Shaoyin) → Wind/cold/damp blockage, heat rebelling: i.e. pain in the eyes,pain on the inner side of the arm, pain along the scapula, eye jaundice, tongue ulcers,pythogenic infections

Small​ ​Intestine​ (hand Taiyang) → External pathogenic invasion, heat rebelling: i.e.pain &/or stiffness of the neck &/or elbow, red eyes, sore throat, mandible swelling, ear trouble.

 Bladder​ ​(foot​ ​Taiyang)​ → Wind/cold/damp blockage, heat rebelling: i.e. fever & aversion to cold, headache, stiff neck, pain in lower back &/or eyes, pain in the posterior leg, hard to bend, nosebleed, hemorrhoids.

Kidneys​ (foot Shaoyin) → Cold: i.e. pain in lower back &/or sole of foot

Pericardium​ (hand Jueyin) → Cold, heat, Liver Qi stagnation: i.e. stiff neck, contraction of elbow or hand, Bi and Wei syndromes, armpit swelling, hot palms, chest pain,shaking arms (anger)

San​ ​Jiao​ ​(hand Shaoyang) → Wind/cold/damp, heat: i.e. sore throat, scrofula, goiter,axillary swelling, pain in the elbow, alternation of chills & fever, deafness, pain & discharge from the ear, pain at the top of the shoulders.

Gallbladder​ (foot Shaoyang) → Cold stagnation, heat rebelling: i.e. alternation of chills &  fever, headache, deafness, pain in hip & lateral side of legs, pain & distension of breasts, difficult leg movements, 4th and 5th toe disorders, inner ear pain, migraine,bitter taste

Liver​ (foot Jueyin) → Cold stagnation, Wind Fire rebelling: i.e. headache, pain & swelling of the eye, leg cramps, pain in side of lower abdomen, hernia, one sided testicle pain radiating to low abdomen, dizziness, blurred vision, eyelid twitching, difficulty swallowing, facial deviation


Region
- only on head (Stomach Heat, or Damp/Heat)
- on forehead, oily (Yang collapse)
- only on arms and legs (Spleen Stomach deficiency)
- only on hands (Lung deficiency, or nerves)
- whole body (Lung deficiency)
- 5 centers (Yin deficiency)
Time
- daytime (Yang deficiency)
- night (Yin deficiency)
Condition
- profuse cold sweats (Yang collapse)
- oily sweat on forehead like pearls not following Yang collapse (danger of imminent
death)
Quality
- oily (severe Yang deficiency)
- yellow (Damp/Heat)
                     
Stool
diarrhea
- painful (Liver, or Heat)
- foul smell (Heat), no smell (Cold)
- chronic (Spleen and/or Kidney Yang deficiency)
- 5am (Kidney Yang deficiency)
- abdominal pain (Cold in intestines)
- with mucous (Damp), mucous and blood (Damp/Heat)
- undigested food (Spleen deficiency)
- burning sensation (Heat)
- bowel incontinence (Spleen Qi sinking)
- black tarry stools (blood stasis), if blood comes first (Damp/Heat in intestines)
- if blood comes first, is dirty, and anus feels heavy and painful (Heat in Blood)
- if stool comes first then blood that is thin and watery (Spleen can't keep blood in
vessels)
- borborygmi with loose stool (Spleen deficiency)
- borborygmi without loose stool (Liver Qi stagnation)
- flatulence (Liver Qi stagnation)
- flatulence with smell (Damp/Heat in Spleen , or Stomach Heat), no smell (Spleen Yang
deficiency Cold)

constipation
- pain after movement (deficiency)
- pain relieved after movement (excess)
- acute with thirst, dry yellow tongue coat (Stomach and intestine Heat)
- old people or after childbirth (Blood deficiency)
- small bitty rabbit stools (Blood deficiency, Liver Qi stagnation, or Heat)
- difficult to move but not dry (Liver Qi stagnation)
- with abdominal pain (deficient Yang Cold)
- dry stools without thirst (Kidney and/or Stomach Yin deficiency)
- alternating constipation and diarrhea (Wood overact on Earth)
TCM​ ​diagnosis​ ​references

Ears
tinnitus​ ​ ​onset
- sudden (Liver Fire, or Liver Wind)
- gradual (Kidney deficiency)
pressure
- aggravated by pressing the ears (excess)
- relieved by pressing the ears (deficiency)
tone
- loud high pitched like whistle, constant (Liver Yang, Liver Fire, or Liver Wind)
- low pitched, intermittent (Kidney deficiency)
deafness
- sudden onset (Liver Fire, or Liver Wind)
- gradual onset (deficiency)
- chronic (Kidney deficiency, Heart blood deficiency, deficiency of Qi of the upper Jiao,Yang( Qi deficiency)
    
Eyes
pain
- needle like pain with redness and headache (Toxic Fire in the Heart meridian)
- pain swelling and redness, (Wind/Heat, or Liver Fire)
- blurred vision and/or floaters (Liver Blood deficiency)
- photophobia (Liver Blood deficiency)
- eye pressure (Kidney Yin deficiency)
dryness
- dryness (Liver and/or Kidney Yin deficiency)

   Sleep
insomnia
- can't get to sleep, but sleep well after falling to sleep (Heart Blood deficiency)
- light sleep, waking frequently (Kidney Yin deficiency)
- dream disturbed (Liver or Heart Fire)
- restless sleep with lots of dreams (food retention)
- wake very early in morning, can't get back to sleep (Gallbladder deficiency)
lethargy
- sleepy after eating (Spleen deficiency)
- heaviness (Damp), if with dizziness (Phlegm)
- very fatigued with cold feelings (Kidney Yang deficiency)
- tired stupor with external heat (Heat invaded the Pericardium)
- tired stupor with rattling in throat, slippery pulse, sticky tongue coat (Phlegm misting
the mind)
   Urine function
- enuresis or incontinence (Kidney deficiency)
- retention of urine (Damp/Heat in Bladder)
- difficulty (Damp/Heat in Bladder, or Kidney deficiency)
- frequent copious (Kidney deficiency)
- frequent scanty (Qi deficiency)
pain
- before urination (Low Jiao Qi stagnation)
- during urination (Bladder Heat)
- after urination (Qi deficiency)
colour
- pale (Bladder or Kidney Cold)
- dark (Heat, or external pathogen has entered deeply)
- turbid or cloudy (Damp in Bladder)
- copious clear pale during exterior attack (pathogen has not entered deeply)
amount
- copious (Kidney Yang deficiency)
- scanty (Kidney Yin deficiency)

 Tcm excess and deficiency
Difficiency Of
Qi,yin,yang,blood and essence .

Eccess of
Internal heat,internal cold ,internal damp, invension , stagnation . 

Difficiency of qi- general , spleen,stomach,lung, kidney, heat.

Difficiency of yin- general,kidney,liver,stomach,lung,heart.

Difficiency of yang- general, kidney,spleen, heart . 

Difficiency of blood - general, liver, heart.

Difficiency of essence.
Excess 

Internal heat
Internal cold
Internal damp
(General ,spleen, damp and heat in liver and lung, damp and heat in large intestine, phelgm in lungs,phelgm and heat in the lungs, damp and cold in bladder,damp and heat in bladder)
Invension of wind
(General,wind heat,wind cold,wind damp)
Stagnation of blood
(General,liver,heart)