Wednesday 21 March 2018

कजरा मोहब्बत वाला: अँखियों में ऐसा डाला


कजरा मोहब्बत वाला: अँखियों में ऐसा डाला::

दादी अम्मा गांव और  गवांरपन को कोई याद नही करना चाहता। न कोई उनकी तरह जीना चाहता है। सिर्फ गरीबी अन्याय और बेरोजगारी के बारे में  चारणगीर बौद्धिक करुण क्रंदन करते दिखते हैं। उसके कारण और निवारण के बारे में  सोचते भी नहीं। 

आज काजल कितने हजार करोड़ का केंद्रीकृत उद्योग है ? लिखेंगे इसी पर। 

लेकिन जरा घर घर पैदा होने वाले उत्पादों की बात कर लिया जाय जो हाल तक हर घर और गावँ में पैदा किये जाते रहे हैं। फिर उस महान अर्थक्रान्ति के जनक कार्ल मार्क्स को याद कर लिया जाय जिसने 1853 में लिखा था - भारत के गावँ स्वतंत्र आर्थिक इकाई हैं, जो निर्माता भी हैं और consumer भी। गोरे और काले नग्रेज़ों ने स्वतंत्र आर्थिक इकाइयों को नष्ट कर दिया - बचा सिर्फ उपभोक्ता बाजार फॅक्टरियां और बाजारवाद ।

नग्रेज़ों ने इन आर्थिक इकाइयों का विनाश कर शहरों को रोजमर्रा की वस्तुओं के उत्पादन का केंद्र बनाया, क्योंकि उन भैंचो को शहर में ऐयाशी करनी थी। जहां उन्होंने क्लब बनाये जिसके बाहर "Indians and Dogs are not allowed" की तख्ती लगवायी। 

उन्होंने गांव गांव निर्मित होने वाले सूती, सिल्क, छींट  और मलमल के कपड़ों, तथा स्टील आदि  ( Wootz steel गूगल कीजिये) के उत्पादन इकाइयों को नष्ट कर के शहरों में उनके मिल और कारखाने खोले। बेरोजगार भारत अपने घर परिवार को छोड़कर रोजी कमाने शहरों की ओर भागा। 

स्वतंत्र भारत का पहला "पर धान मंत्री " सोशलिस्ट फेबियन नेहरू काला अंग्रेज था, जिसने  "गवांर एंड villagers not to be entertained" मॉडल अपनाया ( सुना है कि दरिद्र भारत के इस रईस प्रधानमंत्री के कपड़े इटली में धुलने जाते थे। इसलिए बाद में  उसका पोता एक धोबिन ही उठा लाया भारत को धोने के लिए), और गावों और गवारों को परित्यक्त कर शहरों को विकसित किया। 

जो बेरोजगार भारत शहरों में रोजी कमाने जाता था, लेकिन चूंकि उसका परिवार गांव में रहता था तो वो साल में एक या दो महीने गांव में रहता था। जहां घर घर विदेश निर्यात होने वाले वस्त्रों का उत्पादन तो बन्द हो चुका था परंतु रोजमर्रा के जीवन के उपयोगी वस्तुएं यथा - खटिया मंचिया, दशना रजाई,  दोना पतरी, हांड़ी कुच्चड (कुल्हड़), झौवा खाँची, खुरपी खुरपा, कंटवासा गंडास, गुड़ आचार सिरका, कोहड़ौरी आदि आदि का उत्पादन  अभी भी होता था। 

काले नग्रेज़ों से प्रभावित बेरोजगार ने धीरे से अब अपना परिवार भी शहर में शिफ्ट कर दिया। दादा दादी के निर्देशन में अभी हाल तक घर घर मे बनने वाली ये रोजमर्रा की वस्तुवें अब फैक्टरियां बनाने लगीं । पूंजीपतियों ने स्वरोजगारियों की फिर से बैंड बाजा दी। 

अब आते है काजल पर :
काजल पारना लोग भूल गए । और कजरौटा रखना भी भूल गए। क्योंकि डॉक्टरों ने गवांर औरतों को डांटना शुरू कर दिया कि बच्चे के आंख में जो ढेम्पा लगा के आयी हो इससे इसकी आंख फुट जाएगी। उन गवांरनो ने नग्रेजी डॉक्टर के भय से काजर पारणा और कजरौटा रखना बन्द कर दिया। 

उन्ही गवारों के बच्चो ने  अब मॉडर्न होकर शहर में रहना शुरू कर दिया है। वे  अब काजल पारणा भूल चुके है, लेकिन काजल लगाना नही भूलें है। अब वे फैक्टरियों में पारे हुए ब्रांडेड काजल लगाते हैं जिसकी कीमत 200 से 500 रुपया प्रति कजरौटा है । और "कजरारे कजरारे तेरे कारे कारे नैना " पर डिस्कोथेक या डी जे पर थिरकते हुए नैन मटक्का करते हैं ।

कितने हजार करोड़ का टर्नओवर है काजल के व्यापार का ?
कोई बताए तो।

नोट : जो खटिया आपने बनाना बन्द करके बेड खरीदना शुरू कर दिया है उसको ये नग्रेज ऑस्ट्रेलिया में बनवाकर 70,000 रुपयों में बेच रहे हैं।
लेकिन मचिया अभी भी उनकी पकड़ से दूर है।

© त्रिभुवन सिंह

हमरी न मानों रंगरेजवा से पूँछो जिसने रंग दीना दुपट्टा मेरा : कहाँ बिला गया वो रंगरेज ?

How The Fluid Indian "Jaat Pratha" was changed into Alien / European Rigid Caste System : Part- 3

"मॉडर्न caste सिस्टम एक सनकी रेसिस्ट ब्रिटिश ऑफीसर H H RIESLEY की दें है जिसने 1901 में नाक की चौड़ाई के आधार पर "unfailing law of Caste" का एक सनकी व्यवस्था के तहत एक लिस्ट बनाई , जिसमे उसने नाक की चौड़ाई जितनी ज्यादा हो उसकी सामाजिक हैसियत उतनी नीचे होती हैं , इस फॉर्मूले के तहत सोशियल hierarchy के आधार पर जो लिस्ट बनाई वो आज भी जारी है और संविधान सम्मत है / यही भारत की ब्रेकिंग इंडिया फोर्सस का , और ईसाइयत मे धर्म परिवर्तन का आधार बना हुवा है /
ऐसा नहीं है कि भारत मे जात प्रथा थी ही नहीं / ये थी लेकिन उसका अर्थ था एक कुल या वंश , जिसके साथ कुलगौरव और एक भौगोलिक आधार के साथ साथ एक पेशा भी जुड़ा हुवा था /"
अब MA शेरिंग की 1872 की पुस्तक -"caste आंड ट्राइब्स of इंडिया " से उद्धृत उस प्रथा की रूपरेखा समझने की कोशिश करें ।

"MA SHERING शृंखला -5 " जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 345
Caste of weavers , thread spinners ,Boatmen नुनिया / लूनिया beldars Bhatigars
कटेरा या धुनिया
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रुई की धुनाई करने वाली एक caste है जिनको धुनिया कहा जाता है / ढेर सारे मुसलमान और हिन्दू इस व्यवसाय से जुड़े हुये हैं / रुई की धुनाई और सफाई के लिये जिस यंत्र का ये प्रयोग करते हैं , वो एक साधारण धनुष के समान होता है / जमीन पर उकडूं बैठकर ताज़े रूई के ढेर पर , जिसमें धूल और तिनके और अन्य गंदगी भरी होती है, बायें हाथ में धनुष पकड़कर और दाहिने हाँथ में लकड़ी के mallet से कटेरा लोग जब धनुष की रस्सी पर प्रहार करते हैं तो रूई के ढेर के उपरी सतह पर हलचल होने लगती है / और रूई के ढेर से ह्लके रेशे इस रस्सी से चिपक जाते हैं / ये प्रक्रिया लगातार जारी रहती है जिससे रूई की रूई की बढिया और सुन्दर धुनाई हो जाती है और सारी गंदगी अपने भार की वजह से रूई से अलग होकर जमीन में गिर जाती है / ये caste बनारस दोआब और अवध के पूर्वी जिलों मे पायी जाती है /

कोली या कोरी
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"

नोट - शेरिंग ने 1872 मे #caste शब्द का प्रयोग किन अर्थों मे किया है , जिसमे एक #व्यवसाय में #हिन्दू और #मुसलमान सब सम्मिलित हैं /

और मॉडर्न caste सिस्टम जो Risley की 1901 की जनगणना की देन है , आज किन अर्थों में प्रयुक्त होता है , आप स्वयं देखें / कोली कैसे जो कभी एक संम्‍मानित क्षत्रिय व्यवसायी थे , जब सारे व्यवसाय नष्ट हो गये तो , शेडुलेड़ caste और OBC में लिस्टेड हो जाते है , आप स्वयम् देखें / आभाषी दुनिया के मित्र श्रीराज कोली ने स्वयं यह बात स्वीकार किया है ,की उनके वंशज कहते हैं कि वे क्षत्रिय थे / आपको ये समाज का विखंडन और बंटवारा समझ मे आ रहा है न ?

 "MA SHERING शृंखला -6
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 346

तांती
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बुनकरों की एक कॅस्ट , जो , सिल्क का किनारा (बॉर्डर) aur भांती भांती प्रकार के धातु बनाते हैं / ये किंकबाब या सोने चांडी से मढ़े हुये महन्गी ड्रेस , जिसमें इन्हीं महन्गी धातुओं की embroidary हुई होती हैं , बनाते हैं / बताया जाता है कि ये गुजरात से आये हुये हैं / बनारस में इस ट्राइब का मात्र एक परिवार है जो धनी हैं और शहर के एक विशाल भवन में निवास करता है /

तंत्रा (Tantra)
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तंत्रा एक अलग clan (वंश) है जो सिल्क के धागों का निर्माण करता है / बताया जाता है कि ये दक्षिण से आये है , और इनको निचली कॅस्ट मे माना जाता है क्योंकि ब्राम्हण इनके घरों मे खाना नही खाते हैं /

कोतोह (Kotoh)
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अवध के जिलों मे पे जाने वाली थ्रेड स्पिन्नर्स की की एक छोटी परंतु सम्मानित caste है /
Page- 346

रँगरेज
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कपड़े डाइ करने वालों की caste है ये / ये शब्द रंग से उद्धृत है , और रेज यानी ये काम करने वाला / ये caste प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पायी जाती हैं /

छिप्पी
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कपड़ों पर प्रिंटिंग करने वालों की caste  / इनका विशेष कार्य कपडो पर क्षींट stamp karna है / ये लोगों का ये लोग ज्यादा न्हैं हैं , लेकिन ये प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पाये जाते हैं / बनारस में ये एक अलग caste के अंतर्गत आते हैं /

"छिप्पी अपने आपको राठौर राजपूत कहते हैं "

मल्लाह
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सभी नाविकों को मल्लाह कहा जाता है चाहे वो जिस भी caste के हों / इसके बावजूद मल्लाहों की एक विशेष ट्राइब जो कई कुलों (क्लॅन्स) में बंटे हुये हैं / वो निम्नलिखित हैं :-
१- मल्लाह
२- मुरिया या मुरीयारी
३- पनडुबी
४- बतवा या बातरिया
५- चैनी चैन या चाय
६- सुराया
७- गुरिया
८- तियर
९- कुलवाट
१०- केवट
ये नाविक भी हैं , fisherman (मछली मारने वाले ) भी हैं , और मछली पकडने के लिये जाल की manufacturing भी करते हैं / पहले ये एक दूसरे में शादी करते थे लेकिन अब वो बंद हो चुका है / हिन्दुओं की कई और castes भी मल्लाही का पेशा करते हैं /

नोट : कोई बताए कि ऊपर वर्णित समुदायों मे कौन अगडी थी कौन पिछड़ी थी ? ये किस ग्रंथ मे लिखा है - कि फलाना जात अगड़ी और फलाना जात पिछड़ी ? 
और अगर नहीं लिखा तो ये आया कहाँ से ?
अंबेडकर के चेलों से ये प्रश्न है /

कहाँ गए छिप्पी तांती तंत्रा कोताह रंगरेज ?
मर गए , बिला गए या जहन्नुम रशीद हो गए ।
क्यों और कैसे ?
जब इनका व्यवसाय ही उच्छिन्न हो गया तो ये कहाँ से बचते ?

साभार

डॉ त्रिभुवन सिंह

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