Wednesday 7 February 2018

भिमाकोरेगांव गाथा एक देशद्रोह की

 झूठ 1 :-  कुछ वामपंथी , अंग्रेज इतिहासकारो को कोट करके प्रचारित करते है , की यह युद्ध सामाजिक क्रांति को लेकर था । जिसमे मुट्ठी भर निम्न जाती वर्ग महारो ने ब्राह्मण पेशवाओ के खिलाफ लड़ाई लड़ी । 

समीक्षा :-  
इस युद्ध के सेनापति अंग्रेज अधिकारी 
Francis F. Staunton थे । उनके सहयोगी 8 ब्रिटिश आर्मी ऑफीसर थे जिनके नाम :- 
(1) लेफ्टिनेंट जनरल पैटिंसन
(2) लेफ्टिनेंट जोन्स 
(3) असिस्टेंट सार्जेंट विंगेट 
(4) लेफ्टिनेंट स्वांस्टन
(5) लेफ्टिनेंट चिस्लोम
(6) असिस्टेंट सार्जेंट वाइली
(7) General Pritzler 
(8) जॉन मैल्कम

इस इस युद्ध मे लेफिटनेंट स्वांस्टन 300 घुड़सवारो का प्रतिनिधित्व कर रहा था । 
24 European and 4 Native Madras artillerymen और two 6-pounder guns के साथ लेफ्टिनेंट Chisholm इस लड़ाई में ब्रिटिश सेना के साथ था । 
इस युद्ध मे केवल महार जाती के लोग ही हिस्सा नही ले रहे थे , इस अंग्रेजी troops में मराठे , राजपूत और मुस्लिम और यहूदी भी थे । 

इस लड़ाई के अंत मे Assistant-Surgeon Wingate and Lieutenant (लेफ्टिनेंट) Chisholm; Lieutenant Pattison  मारे गए । साथ ही ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना की ओर से 22 महार जाती के लोग , 16 मराठा , 8 राजपूत , 2 मुस्लिम , 2 यहूदी मारे गए । 
275 ब्रिटिश सैनिक मारे गए और मराठाओं की सेना में  500- 600 मराठे मारे गए । 
(सारे प्रमाण ब्रिटिश सरकारी रिपोर्ट के आकड़ो से )

इस युद्ध को किसी भी तरह सामाजिक क्रांति नही कहा जा सकता कारण यह है की यह युद्ध को नेतृत्व   से लेकर जमीन तक अंग्रेज अफसरों ने राजनैतिक रूप से लड़ा ।  जिसमे उनका साथ पेशवाओ द्वारा प्रमुख पदों पर नियुक्त महारो और पेशवा पद के लोभी कुछ   पारिवारिक लोगो ने अंग्रेजो का साथ दिया । इस लड़ाई को 3rd war between The Brittish East India Company और मराठाओ ने लड़ी के नाम से जाना जाता है । ध्यान रहे इस लड़ाई का उतना अधिक महत्व नही था जितना प्रचारित है कारण यह था कि पूर्व के 2 आंग्ल मराठा युद्ध से पूर्व ही पेशवा घराने में फुट हो चुकी थी , और पेंशनधारी पेशवा का महत्व क्षीण हो चुका था । 

मराठो की हार का कारण - 

(1) राजघराने के अन्य सदस्यों में पेशवा पद की महत्वांकक्षा ।

(2) पुणे के कोरेगांव में पेशवा से गद्दारी करते हुए महारो द्वारा अंग्रेजो से मिलकर , अपने पदों और प्रतिष्ठा का दुरुपयोग करते हुए जमीन और विलासिता के लालच में नक्सिलयों सरीखे कत्लेआम मचाना शुरू करना । 

झूठ 2 :-  इस युद्ध मे 28000 पेशवा और 800 महार हिस्सा ले रहे थे । 

समीक्षा -  महाझूठ है , यह आंकड़ा जिसकी प्रमाणिकता शून्य है । इस युद्ध से सम्बंधित जितने भी आंकड़े है वह अंग्रेज अधिकारी Mountstuart Elphinstone  ने 3 जनवरी को अर्थात युद्ध के 2 दिन बाद कोरेगांव जाकर लिखी । दूसरी ओर पेशवाओ की आर्मी में अधिकतर मराठा , महार , यादव और राजपूत थे ।

निष्कर्ष : -  कथित सामाजिक  युद्ध के परिणाम स्वरूप समाज और शासन मे प्रतिष्ठित वर्ग महार जाती (अम्बेडकर की जाती ) अछूत बनी । दूध वालो ने दूध देने बन्द किया , पंडितो ने मन्दिरो में प्रवेश निषेध कर दिया । अध्यापकों ने इन्हें शिक्षा देना बंद कर दिया, कुएं से पानी भरना बंद करा दिया।

और कथित सामाजिक क्रांति का हीरो बना , Captain Staunton की honorary में  Governor General of India की सुरक्षा में नियुक्त कर दिया गया । Court of Directors ने उसे sword honor और 500 guineas (gold coins) से सम्मानित किया गया ।
और बाद में 1823 में उसे मेजर बना दिया गया ।

प्रमाण : -  आज भी पुणे में भीमा कोरेगांव की मीनार, महारों के देशद्रोह और अपराध की गवाही दे रही है। इसके युद्ध के लिए महारों में कोई पछतावा नही बल्कि आज भी हर बरस 1 जनवरी को कई महार वहां उसी युद्ध के लिए शौर्य दिवस मनाने के लिए इकट्ठा केवल इसीलिये होते है क्योंकि पेशवा ब्राह्मण होतें हैं । 

इस मीनार का निर्माण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने Captain Staunton's के सम्मान में बनवाया । इस मीनार पर कुल 49 सैनिकों के नाम लिखे गए । जिसमे महज 22 महार जाती के थे ।

 1 January 1927 में साइमन कमीशन के आने से पूर्व ब्रिटिश बड़ोदरा आर्मी के सचिव , इंडो ब्रिटिश श्रम मंत्री भीम राव अम्बेडकर भी महारो के देशद्रोह को छुपाने के लिए भिमा कोरेगांव जाकर आपने जाती के मारे गए लोगो को शहीद कहा और वह इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाए जाने का एलान किया जिसके बाद वह अंग्रेजो द्वारा डिप्रेस्ड क्लास के नेता चुने गए । बाद में उन्होंने महारो के अछूत बनाये जाने का कारण उनके कुकर्मो को नही बल्कि मनुस्मृति को ठहराया । 

मित्रो ब्रिटिश महार रेजिमेंट की ताकत और शौर्य का अंदाज़ा आप इसी हिसाब से लगा ले कि यह महार रेजिमेंट अफगान युद्ध मे मुट्ठी भर देशभक्त अफगानी पठानों से बुरी तरह पीटकर हारे थे । 

इससे भी सबसे बड़ी बात यह है कि राजपूत रेजिमेंट , जाट रेजिमेंट , सिख रेजिमेंट , से लेकर कई जाती आधारित रेजिमेंट्स ने अंग्रेजो के लिए कई लड़ाईया लड़ी लेकिन कोई भी जाती अंग्रेजो की जीत को आज अपने शौर्य में नही देखती सिवाय एक के जिसका नाम है "महार ईसाई"

आज शर्म की बात यह है कि दलित वोट बैंक की गलाकाट स्पर्धा में जातिवादी नेताओ का रसूलीकरण किया जा रहा है । राजनीतिक रूप से आज जातिवाद का जहर फैलाया जा रहा है , जातियों के नाम बदलते रहेंगे और भारत हारता रहेगा । देश balkanaization की ओर बढ़ता रहेगा ,  कारण देश मे खड़े किये जा रहे ethenic groups है । कोंग्रेस जैसे पार्टिया खालिद , कन्हैया , वुमेला , मेवाणी , चन्द्रशेखर , जैसे रावण और  रक्तबीज खड़े करके 2019 आते आते कितना जातिवादी जहर समाज मे भरेंगी यह आने वाले वक्त में आपको भी दिखेगा । 

(1)  इस युद्ध मे आंकड़े सम्बंधित समस्त बातो का प्राप्त प्राचीनतम प्रमाण युद्ध के 67 साल बाद रचित Gazetteer of the Bombay Presidency . 18 . Government Central Press. 1885. pp. 244–247 से )

(2) James Grant Duff (1826). A History of the Mahrattas  . Longmans, Rees, Orme, Brown, and Green. pp. 432–438.

(3) आकड़ो का प्रमाण यहाँ भी क्रॉस चेक कर सकते है V. Longer (1981). Forefront for Ever: The History of the Mahar Regiment

साभार 
हिमांशु शुक्ला
संकलन

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