Wednesday 7 February 2018

देवी दुर्गा और महिषासुर की ऐतिहासिक गाथा

पिछले एक दो वर्षों से भारत को खंडित करने का असंभव स्वप्न देखने वाली पाशविक शक्तियाँ अचानक ही अत्यधिक सक्रिय हो उठीं हैं । भारत के महानायकों , सांस्कृतिक परंपराओं और प्रतीकों को चुन चुन कर निशाना बनाया जा रहा है । उनके ऐसे ही कुत्सित प्रयासों में से एक है -- 

............... " महिषासुर उत्सव " ...................

' दलित बनाम सवर्ण ' की घिनौनी जातिवादी सोच को  ' महिषासुर उत्सव ' के रूप में ऐतिहासिक आयाम देने की कोशिश की जा रही है और लगभग मृतप्रायः सिद्धांत  ' गौरवर्णी आर्य और श्यामवर्णी अनार्य ' सिद्धांत को फिर से हवा दी जा रही है । जे एन यू के सीवेज स्कॉलर्स , देशद्रोही कम्यूनिस्टों और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों द्वारा वैचारिक रूप से पोषित तथा  सऊदी अरब और वैटिकन से वित्तपोषित इन देशघाती व्यक्तियों और संगठनों ने कुछ मनघडंत तथ्यों को  ' आर्य रानी दुर्गा द्वारा  भोले अनार्य राजा महिषासुर की छल से हत्या ' के नाम से इतिहास कहकर प्रचारित किया जा रहा है । 
इनके तर्क ये हैं -----

-- आज के ' अहीर ' यानि कि ' यादव ' ही उस युग में ' असुर ' थे जो कि भारत के मूल निवासी थे । 
-- दुर्गा दरअसल देवों अर्थात आर्यों द्वारा भेजी गयी एक वेश्या थी जिसने 9 दिन तक अनार्य राजा महिषासुर के साथ रहने के बाद उसकी हत्या कर दी 
-- इसीलिये महिषासुर अनार्यों यानी मूल निवासियों के लिये शहीद है और नवदुर्गोत्सव वास्तव में महिषासुर की हत्या का वीभत्स उत्सव है जिसे बंद किया जाना चाहिये । 

जबकि तथ्य ये हैं ---

1-- किसी भी भाषा शास्त्री से पूछ लीजिये , ' अहीर ' शब्द  का मूल शब्द ' आभीर ' होगा जो वाकई में प्राचीन भारत की एक यायावर लड़ाकू आर्य कबीला था जो धीरे धीरे पूरे भारत में यहां वहां बस गये थे । आज ये महाराष्ट्र में ' जाधव ' और उत्तर में ' यादव ' नाम से जाने जाते हैं । महाराष्ट्र क्षेत्र में महाराज ईश्वरदत्त आभीर प्रसिद्ध अहीर नरेश हुए हैं । इन्हें ' असुर ' बनाने पर काहे तुले हो भाई ? 

2 -- जिस महिषासुर का जन्म ही  देव अग्नि के आशीर्वाद से हुआ उसे ' आर्य - अनार्य संघर्ष ' का प्रतीक किस तरह बना रहे हो ? 

3 -- नारी सम्मान के ठेकेदार नारीवादी वामियो , किस जगह लिखा है की दुर्गा महिषासुर के महल में गयी ।

4-- अगर आप नवदुर्गोत्सव को इतिहास मानते हैं तो ऐतिहासिक अनुसंधान और विमर्श से क्यों भागते हैं ? 

5-- मातृपूजा तो विश्वव्यापक रही है और शाक्त संप्रदाय का जन्म दक्षिण भारत से माना जाता है तो उसे षड्यंत्रपूर्वक बंगाल से क्यों जोड़ा जा रहा है ?

#तो_फिर_सत्य_क्या_है_?

वास्तविकता यह है कि भारत में इतिहास के उन मूल तथ्यों और कड़ियों को जानबूझकर या अनजाने में विस्मृत कर दिया गया जिनसे हमारे प्राक्इतिहास की रूपरेखा तैयार होती है और जिनके उल्लेख पुराण , महाकाव्य , विदेशी यात्रियों के वृत्तांत ' शिलालेख और अनुश्रुतियों में भरे पड़े हैं । 

ऐसा ही एक मूलभूत तथ्य है भारत में #टॉटेम आधारित असंख्य गणराज्यों की श्रृंखला । 
उदाहरण के लिये  #गज नामक गण राज्य हिमालय की श्रंखला में था और #हस्ति राज्य भी उससे निकली शाखा थी जिसका उल्लेख सिकंदर ने " अष्टिनोइ " नाम से किया था । गजनी शहर जिस महाराज गज का बसाया बताया जाता है दरअसल वह गज नामक गण राज्य था । अफगानिस्तान में #अश्व व #अश्वकायन ( जो आज बिगड़कर अफगान है और जिसका उल्लेख मैंने अपनी सीरीज Unsung Heroes में भी किया है   ) आदि भी थे । 
इसी तरह #मूषिक गणराज्य भी था जो गणेश के नेतृत्व में गजों के साथ संयुक्त हो गया था । कालांतर में ये मूषिक दक्षिण भारत में चले आये और साथ में लाये अपने नेता #गजशीश_मुकुट_धारी नेता गणेश की स्मृतियाँ । 
खारवेल के अभिलेख में इस मूषिक नगर का उल्लेख है । 
यह कोई संयोग नहीं की गणेश पूजा का प्रचलन दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में अधिक है और मूषिक नगर महाराष्ट्र में स्थित था । 

इसी तरह हिमालय में #मत्तमयूर जिनका उल्लेख महाभारत से बौद्ध काल तक होता रहा , जिनका चिन्ह " मयूर " था और वे अपने नेता कार्तिकेय की उपासना करते थे और कार्तिकेय का वाहन क्या था सभी जानते हैं । बाद में उनकी उपासना दक्षिण के #मुर्ग राज्य में भी हुई तो मुर्गा उनकी ध्वजा का चिन्ह बन गया और दक्षिण में वे मुरुगन के नाम से ही प्रसिद्ध हो गये । 

इसी प्रकार दक्षिण भारत में  एक और गणराज्य था जिसका नाम था #महिष  और उससे निकली शाखा थी #माहिषक जिनका उल्लेख महाभारत में भी हुआ है ।  दक्षिण भारत में वर्तमान " मैसूर " नगर  उसी महिष राज्य के नाम पर है जिसका राजा इतिहास में " महिषासुर " नाम से प्रसिद्ध हुआ । ( महिष + पुर = महिषपुर = मैसूर ) मैसूर में महिषासुर की विशालकाय मूर्ति भी लगी है । 

# यह कोई संयोग नहीं लगता की तमिलनाडु में बसे हुए  " टोडा " जनजाति के लोग अपने महिष प्रेम अर्थात केवल और केवल भैंस पालन के लिये विख्यात हैं । उनका प्राचीन माहिषकों से संबंध एक गंभीर ऐतिहासिक अनुसंधान की मांग करता है । 

  महिष गणराज्य की एक स्त्री या रानी जिसे पुराणों में " महिषी " कहा गया और जिसे बाद के लोगों ने भ्रमवश " भैंस " समझ लिया , से एक दानव रम्भ ने विवाह कर लिया और इस राज्य पर अधिकार कर लिया जिससे बौखलाकर महिष जाति के अन्य युवक ने रम्भ की हत्या कर दी ।  पति की मृत्यु के बाद एक पुत्र को जन्म देकर महिषी रानी की भी मृत्यु हो गयी और इसका पुत्र कहलाया " महिषासुर  । 

महिषासुर अत्यंत महत्वाकांक्षी राजा था जिसके पराक्रम की आंच उत्तरी भारत और देव जाति तक पहुंचने लगी परंतु दुर्भाग्य से यौवन और सत्ता के नशे ने उसे कामांध बना दिया और वैसे ही उसके अधिकारी बन गये । पड़ौसी राज्यों पर धावा और उनकी स्त्रियों व  कन्याओं का अपहरण व बलात्कार उसका रोज का काम हो गया । प्रजाएं हाहाकार करने लगीं और शक्ति संतुलन भी टूटने लगा पर ब्रह्मा के दिए वचन ( वरदान ) के कारण देव विवश थे और तब देवों ने महिषों के पड़ोसी मातृसत्तात्मक राज्य को इस राज्य के विरुद्ध सहायता देना शुरू किया जिसका पूरा प्रशासन ही स्त्रियों के हाथ में था ।
(इस स्त्री राज्य की परंपरा आगे सहस्त्राब्दियों तक चलती रही और इस स्त्री राज्य का उल्लेख मैगस्थनीज ने भी किया है ) 
देवों द्वारा एक अनिंद्य सुंदरी परंतु मानसिक रूप से अत्यंत दृढ़ कन्या को चुना गया  और इसी को पुराणों में दुर्गा की देवों द्वारा तेजोत्पत्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है । 
इसके बाद उन्हें कठोर प्रशिक्षण दिया गया । देवताओं द्वारा दुर्गा को विभिन्न अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित किया जाना इसी का प्रतीक है ।  
इसी प्रकार 9 अन्य कन्याओं को भी प्रशिक्षित किया गया जिनमें सबसे भयंकर थी " काली " जिसे " रुद्रों " की परंपरा में प्रशिक्षित किया गया था । 

पूरी तैयारी के बाद में  दुर्गा ने  सहायक  शक्तियों के साथ महिष राज्य में प्रवेश किया और अत्याचारी कामी लंपट राजा महिषासुर व उसके लंपट पदाधिकारियों का वध कर दिया और इस तरह दक्षिण भारत के मातृसत्तात्मक समाज की मान्यताओं से ऐतिहासिक व्यक्तित्व के मिश्रण द्वारा  दुर्गा पूजा और नव दुर्गा के मिथ का जन्म हुआ ।

बाद में महिषासुर की पत्नी ने भी प्रतिशोध लेने की कोशिश की जिसका वध मोहिनी और शिव के पुत्र अयप्पन द्वारा किया गया और वे आज शबरीमलाइ पर भगवान अयप्पा के नाम से पूजे जाते हैं । 

अथ श्री दुर्गा कथा । 

" या देवि सर्वभूतेषु शक्ति रूपेणि संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।। "

साभार
देवेंद्र सिकरवार

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