Wednesday 7 February 2018

बौद्ध धर्म है या पाखंड


बहुत दिन नहीं हुए जब मैंने एक ब्लॉग में इस बात की चर्चा की थी कि बौद्ध धर्म, एक धर्म है या, जैसा कि उसको मानने वाले दावा करते हैं, एक दर्शन है, जीवन-शैली है। मेरा विचार है कि यह एक धर्म है, भले ही वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते। आज मैं बौद्ध धर्म के एक और पक्ष के बारे में लिखना चाहता हूँ, जिसका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि बौद्ध धर्म भी कितना सीमाबद्ध और संगठित धर्म है। इससे यह भी पता चलता है कि दूसरे धर्मों की तरह वह भी बहुत मूर्खतापूर्ण परम्पराओं वाला धर्म है: लामा की व्यवस्था, लामा, जो धर्म गुरु होते हैं और उनका पुनर्जन्म होता है।

इसलिए ये लामा अक्सर पुनर्जन्म के लिए चुने गए स्थान के विषय में थोड़ी बहुत जानकारियाँ अपने मरने से पहले ही ज़ाहिर कर देते हैं। अजीब बात यह है कि वह जानकारी बहुत असपष्ट होती है-इसलिए उच्च लामाओं को, जो अवतार की खोज में लगे होते हैं, किसी देववाणी से सलाह-मशविरा करना पड़ता है, वे स्वप्नों का इंतज़ार करते रहते हैं या फिर कोई ईश्वरीय संदेश या दिव्यदृष्टि प्राप्त करने के लिए ध्यान लगाते हैं। जब मृतक लामा का दाहसंस्कार किया जाता है तो वे उड़ते हुए धुएँ की दिशा से अनुमान लगाने का प्रयत्न करते हैं कि धुआँ पश्चिम दिशा में जा रहा है तो उस तरफ खोजना उचित होगा। अगर किसी लामा को दिव्यदृष्टि से हरी छत वाला घर दिखा है तो वे पश्चिम दिशा में किसी हरी छत वाले घर की खोज करेंगे। आप कल्पना कर सकते हैं कि यह दिव्यदृष्टि कितनी विविध और विशाल संभावनाओं से युक्त होती हैं। पिछले लामा की मृत्यु के बाद जन्में सैकड़ों बच्चे चुने जाने के हकदार हो सकते हैं!

ज़ाहिर है, भिक्षु उन सबकी एक सूची तैयार करते हैं और फिर अगले प्रतीकों, संकेतों, देववाणियों और ऊपर से आने वाली सूचनाओं का इंतज़ार करते हैं, जिससे असली लामा के चुनाव में कोई गलती न हो। उनके आधार पर जब वे कुछ बच्चों को चुन लेते हैं तो बच्चों को वे चीज़ें दिखाई जाती हैं जो पिछले लामा इस्तेमाल किया करते थे। अगर कोई लड़का उन वस्तुओं को पहचान लेता है तो वे विश्वास कर लेते हैं कि यही वह अवतार है, जिसकी खोज वे कर रहे थे।

इतने पापड़ बेलने के बाद भी अगर असली लामा के बारे में कोई संदेह रह जाता है तो वे सबसे सीधा, सरल तरीका अपनाते हैं: सारे बच्चों के नाम अलग-अलग कागज़ की पुर्ज़ियों में लिखकर एक घड़े में डाल देते हैं और उसे अच्छे से हिलाकर उनमें से एक पुर्ज़ी निकाल लेते हैं। बस यही है असली, नया लामा! बढ़िया! कोई शक?

अपने मुखिया के चुनाव की इस इस प्रक्रिया के बारे में पढ़कर कौन होगा जो बौद्ध धर्म को धर्म न माने? ईमानदारी की बात यह है कि आप एक खास वंश के किसी व्यक्ति के बारे में यह विश्वास कर रहे हैं कि उसमें ईश्वरीय गुण मौजूद हैं और जो यह तो बता सकता है कि वह कहाँ पुनर्जन्म लेगा मगर यह नहीं बता पाता कि अगले जन्म में उसके माता-पिता कौन होंगे या अपने पुनर्जन्म की ठीक-ठीक तारीख और जगह क्या होगी! अगर अपने पुनर्जन्म के बारे में उन्हें दिव्यदृष्टि प्राप्त है तो फिर वे यह सुनिश्चित क्यों नहीं करते कि उनके सह-लामाओं से किसी तरह की चूक की संभावना ही न रहे?

मेरी नज़र में तो बच्चे (नए लामा) के चुनाव का यह निर्णय पूरी तरह बेतरतीब और निरर्थक है। जिस तरह बच्चे को अपने परिवार और माँ-बाप से अलग कर दिया जाता है और उसे एक मठ में रहने के लिए मजबूर किया जाता है उसे देखकर मुझे बड़ा दुख होता है। फिर वहाँ उसे धर्मग्रंथों के अध्ययन में लगा दिया जाता है जिससे वह आगे चलकर उच्च श्रेणी का उपदेशक और सन्यासी बन सके। मेरी नज़र में आप ऐसा करके उस बच्चे का बचपन छीन लेते हैं।

मैं अपने इस लेख को दलाई लामा की आत्मकथात्मक पुस्तक के इस अंश के साथ समाप्त करूंगा, जिसे एक इतिहासकार ने उद्धृत किया है और जिसमें खुद दलाई लामा ने इस बात की पुष्टि की है कि उनका चुनाव भी मनुष्यों ने ही किया था, न कि किसी ईश्वरीय संकेतों ने या ईश्वरीय शक्ति ने।

"गंदेन महल के आधिकारिक सावा काचू ने मुझे कुछ मूर्तियाँ और जपमालाएँ दिखाईं (वे वस्तुएँ चौथे दलाई लामा और दूसरे लामाओं की थीं), लेकिन मैं उनके बीच कोई फर्क करने में सफल नहीं हुआ! फिर वह कमरे से बाहर निकल गया और मैंने उसे लोगों से कहते सुना कि मैं उस परीक्षा में सफल रहा हूँ। बाद में जब वह मेरा शिक्षक बना, कई बार मुझे उलाहना देता रहता था कि तुम्हें मेहनत से हर काम सीखना चाहिए क्योंकि तुम चीजों को पहचानने में असफल रहे थे!"

श्री बिन्दु सेवा संस्थान (भारत) एवं स्वामी बालेन्दु ई.वी. (जर्मनी)

नववादी भीमटा भले ही हिन्दुओ के ३३ करोड़ देवी देवता होने पर मजाक बनाते हो लेकिन अपने बौद्ध धम्म को नही देखते जिसमे १२ खरव देवो की कल्पना है - 
बौद्ध मत की बुद्ध की जीवनी पर लिखे ग्रन्थ ललित विस्तार सुत्त के दुष्करचर्यापरिवर्त के गाथा ८२० में आया है - 
" द्वादश नयुता पूर्णा विनीत मरु " - ललित विस्तार १७ /८२० 
अर्थात बुद्ध १२ खरब देवो द्वारा विनीत हुए |
फोटो में शांतिभिक्षु शास्त्री के ललितविस्तार टीका का प्रमाण है।
जो भीम्टे हिन्दुओ से ३३ करोड़ देवो के नाम पूछते है वो जरा इन १२ खरब देवो के नाम बताये ?
. लेखक नटराज मुमुक्षु जी
यही नहीं, सुत्तपिटक में दस लाख यक्ष भी लिखे हैं:-(महासमयसुत्त, दीघनिकाय, सुत्तपिटक)*
5.
*सत्तसहस्सा ते यक्खा,*
*भुम्मा कापिलवत्थवा।*
*इद्धिमन्तो जुतीमन्तो,*
*वण्णवन्तो यसस्सिनो।*
*मोदमाना अभिक्कामुं,*
*भिक्खूनं समितिं वनं।।*
*छसहस्सा हेमवता,*
*यक्खा नानत्तवण्णिनो।*
*इद्धिमन्तो जुतीमन्तो,*
*वण्णवन्तो यसस्सिनो।*
*मोदमाना अभिक्कामुं,*
*भिक्खूनं समितिं वनं।।*
*सातागिरा तिसहस्सा,*
*यक्खा नानत्तवण्णिनो।*
*इद्धिमन्तो जुतीमन्तो,*
*वण्णवन्तो यसस्सिनो।*
*मोदमाना अभिक्कामुं,*
*भिक्खूनं समितिं वनं।।*
*इच्चेते सोळससहस्सा,*
*यक्खा नानत्तवण्णिनो।*
*इद्धिमन्तो जुतीमन्तो,*
*वण्णवन्तो यसस्सिनो।*
*मोदमाना अभिक्कामुं,*
*भिक्खूनं समितिं वनं।।*
*वेस्सामित्ता पञ्चसता,*
*यक्खा नानत्तवण्णिनो।*
*इद्धिमन्तो जुतीमन्तो,*
*वण्णवन्तो यसस्सिनो।*
*मोदमाना अभिक्कामुं,*
*भिक्खूनं समितिं वनं।।*
*कुम्भीरो राजगहिको,*
*वेपुल्लस्स निवेसनं।*
*भिय्यो नं सतसहस्सं,*
*यक्खानं पयिरुपासति।*
*कुम्भीरो राजगहिको,*
*सोपागा समितिं वनं।।*
कपिलवस्तुवासी ऋद्धिमान्, द्युतिमान्, रूपवान्, यशस्वी, श्रद्धालु भूमिदेवता यक्ष प्रसन्नता पूर्वक इस वन में यह भिक्षुसमवाय देखने के लिये आए हुए हैं।।
हिमालय पर्वत में रहने वाले छह हजार यक्ष जो कि नाना वर्ण वाले, ऋद्धि, आनुभाव, वर्ण और यश से सम्पन्न थे, प्रसन्नता पूर्वक उस भिक्षुसंघ के दर्शन हेतु उस वन में आए।।
सातगिरि पर्वत पर रहनेवाले तीस हजार यक्ष-------।।
विश्वामित्र पर्वत पर रहने वाले पाँच सौ यक्ष------।।
राजगृह के वैपुल्य पर्वत का निवासी कुम्भीर यक्ष, जिसके साथ एक लाख से भी अधिक यक्ष थे, इस वन में भिक्षुओं के दर्शन हेतु आया हुआ है।।



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