Wednesday 7 February 2018

राष्ट्रोंउद्धारक परमार

नवसाहसाकं -चरित परमार युग का संस्कृत काव्यग्रन्थ है । इसका प्रणयन पद्मगुप्त परिमल ने उस समय किया था, जब उत्तरापथ में हूण छा गए थे । हूण बहुत ही बर्बर जाति थी । इतिहास में हूणों ओर मुसलमानो को एक ही शब्द " तुरुष्क " ही दिया गया है । हूणों का नवीन वर्जन ही इस्लाम है, उनके पास कुरान नही थी, इन लोगो के पास कुरान है, फर्क केवल इतना ही है !! हूण असभ्य ओर बर्बर  लोग थे, जो दूसरों की महिलाओ को उठाते, लोगो की हत्या कर उनका धन लूट फरार हो जाते । 

हूणों का आतंक बढ़ता ही जा रहा था , अतः ऐसे समय मे सिंहो को तो गर्जना ही था । हिरण -हूणों का शिकार करने का जिम्मा सिंह को लेना ही था । परमार वंश का उदय इसी उद्देश्य के साथ हुआ था   

परमारो लोग शत्रु  को नष्ठ करने में सिंहतुल्य ही थे ।  ये शत्रु ( असुर-कुञ्जर = मत, मल्लेछ , मातंक ) थे । इन लोगो ने पूरे विश्व की धरती से  शांति गायब कर दी थी । इन लोगो के अत्याचारो के कारण ही इन तुरुषको को भी " हूण " की संज्ञा दी गयी है।  

इन हूण हस्तियों में ह्रदय में इन सिंहो ने ऐसा भय भर दिया था, की वे परमारो का सामना करने का साहस नही करते थे   ! ( नावसाहसंकचरित्र -10 -18 ) 

इन हूणों को श्रीसिंधुराज ने स्थापित किया था । इस प्रकार मालवेंद्र -परमार शाशक भी, देव-शत्रुओं , असुरो के विनाश के लिए महान संघर्ष करते रहें !!  ( नावसाहसंक - 16-120 , मालव राज की उदयपुर प्रशस्ति !! 

इस प्रकार सतत क्षात्र-बल का परिचय देते हुए परमारो ने भगवान वराह की तरह धरती का उद्धार किया था।  इसी कारण कवि इसे वराहलीला कहता है । 

              #परमारो_की_उत्पत्ति 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।

जब जब धर्म की हानि होती है, ईश्वर आते है, ओर धर्म की स्थापना करते है । यही तो परमारो ने किया था।  प्रतिहारो के पतन के बाद इस तुर्की बाढ़ को रोकने के लिए ही परमारो का फिर उदय हुआ था । 

पृथ्वी जब भय से त्रस्त होकर अपने रक्षक को बुला रही थी, तब भगवान श्रीविष्णु अपनी भू-वैष्णवी के दुःख भरी चीख सुनकर भगवान श्री विष्णु धरती पर अवतरित हो गए । परमार, चाहमान उर्फ चौहान, प्रतिहार ओर चालुक्य की के उदयरत होने का यही कारण था। 

विश्वामित्र ने जब वसिष्ठ से उनकी कामधेनु छीन ली थी, तब विश्वामित्र ने यज्ञ अग्नि से एक वीर की उतपति हुई, उसने अकेले ही विश्वामित्र के सैनिको को परास्त कर, गाय को उनसे छीनकर वापस दे दिया । इस पर वशिस्ठ ने कहा तुम परमार नाम से जाने जाओगे ... ( उदयपुर प्रशस्ति - श्लोक 5 -6 ) 

नवसाहसअंक में भी यही विवरण दिया गया । की वशिष्ठ के मंत्रों से एक वीर की उत्पती हुई, जिनका नाम था - पुमान 

प्रसन्न होकर वशिष्ठ ने पुमान को धरती पर शाशक होने का वरदान दिया, यही शत्रुनाशक परमार पृथ्वी पर उसकी रक्षा के लिए प्रकट हुआ था । परमार अभिलेखो भी इस कथा की पुष्टि करते है । 

निर्बल मनुष्यो की रक्षा करने वाले भगवान के अवतार होते है । परमारो का संघर्ष असाधारण रहा है । हूण , शक सबसे यह लोग लड़े है । यहां तक कि परमारो से तो सिकंदर को भी भिड़ना पड़ा था । परमार मूल नाम परमारणः जिसका अर्थ है, शत्रु का विनाशक ...

प्रतिहारो के पतन के बाद जब आर्यवत की सुरक्षा जब इस्लामी मल्लेछो की बढ़ती शक्ति के कारण संकट में पड़ गयी, तब पुनः एक खोई हई शक्ति महाजनपद के रूप में उभरी , जिसने ना केवल देश और संस्कृति की रक्षा की, बल्कि इस बार परमारो का एक नया ही युग सजकर सामने आया !

        #परमार_वंश_के_मुख्य_सम्राट

#उपेंद्र --परमार वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष उपेंद्र थे ! नावसाहसाकं में परमार वंश का उल्लेख करते हुए पद्मगुप्त उन्हें सूर्य और चन्द्र के समान तेजस्वी बताते है । उन्होंने अपने शत्रुओं का दमन भी बहुत किया, ओर यज्ञ भी बहुत किये । 800 ईस्वी में उन्होंने मालवा जीता, ओर उसके बाद खुद को राजा घोषित किया !! इसके बाद राजा हुए उनके पुत्र -

#वैरिसिंहः - यह बड़े ही वीर ओर पराक्रमी शाशक थे।  अपने पिता से भी ज़्यादा, इन्ही के काल मे परमारो का डंका बजना शुरू हो गया था । इनके बाद हुए सीयक यह अपने पिता और पितामह ने भी ज़्यादा वीर निकले, ओर बंगाल की खाड़ी तक परमारो का ध्वज फैल गया । इनके बाद वैरिसिंहः द्वितीय हुए । यह भी अपने कुल की परंपरा को निभाते गए, योग्य शाशक सिद्ध हुए । 

लेकिन परमार इतिहास की कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण अध्याय तब जुड़ा, जब हर्षदेव उर्फ सीयक द्वितीय राजा बने । ये 949 ई में सिंहासन पर बैठे । उन्हें महाराजधिराजपति , महामाण्डलिकचूड़ामणि कहा गया है । मेरुतंग के प्रसिद्ध ग्रँथ प्रबंधचिंतामणि में इन्हें " सिंहदत्त भट कहा गया है । यह बहुत ही महत्वपूर्ण उपाधि है । भारतीय लोगो की वीरचेतना जाग ना जाये, इसीलिए ऐसे राजाओ का इतिहास ही खत्म कर दिया !! 

सिंहदत भट का शुद्ध अर्थ सिंहदन्ति भट होना चाहिए, जिसका अर्थ होता है की महाराज श्रीहर्षदेव हाथी को नष्ठ करने के लिए, सिंह के समान वीर था।  सीरीज द्वितीय ने हूणों ओर तुर्को दोनो को परास्त किया था।  लेकिन परमारो के इतिहास ने सबसे महत्वपूर्ण करवट तब ली, जब  शक्तिशाली " राष्ट्रकूटों " पर चढ़ाई कर दी । ओर उन्हें बड़ी बुरी तरह परास्त किया !! सीयक जब सिंहासन ओर बैठा तो एक दीन हीन राज्य था, लेकिन अपने पीछे एक विशाल साम्राज्य छोड़ कर गया - जिसका विस्तार उत्तर में बांसवाड़ा तक, पूर्व में भिलसा तक, दक्षिण में गोदावरी तक  ओर पश्चिम में मही तक था ।

एक बार कोई अनाथ बच्चा उन्हें मिला, जिन्हें वो महक ले आये !! बहुत स्नेह उन्हें इस बच्चे से हो गया । सीयर के उसके बाद अपना स्वम् का भी एक बेटा हुआ, जिसका नाम था - सिन्धुराज ! किन्तु मुंज पर सीयर का स्नेह अब भी बना हुआ था , ओर उन्होंने मुंज को ही अपना उत्तराधिकारी चुना !! 

अपने जीवन के अंतिम समय मे सीयर माला लेकर हिमालय चले गए और तपश्या में मग्न हो गए !! 

                #वाक्पति_मुंज

श्री हर्षदेव का यह पुत्र गुणों का घर था । विक्रम-विद्या -वाणी से मुग्ध उनकी प्रशंसा करते नही थकते !! सत्ता हाथ मे आते ही उन्होंने अपना ध्यान राज्यविस्तार में लगाया । उन्होंने सबसे पहले कलचुरियों पर विजय प्राप्त की थी।  कलचुरियों का सारा राज्य परमारो का हो गया । यहां से छेदी को भी उन्होंने परास्त किया !! अगला निशाना उनका गुहिलवंश बना, परमारो ने गुहिलों  ( सिसोदिया ) को भी परास्त किया !! 

तीसरा ओर बड़ा आक्रमण परमारो ने चौहानो पर किया !! चौहानो का अधिकार आबू पर्वत तक फैल गया था । मुंज ने चौहानो को पराजित कर दक्षिण भाग को जीत लिया । चालुक्य विक्रमादित्य पंचम के कोथेन दानपत्र में उनकी मारवाड़ पर विजय का भी विवरण है । उसके बाद उन्होंने चाहमानों की राजधानी नडॉल पर भी आक्रमण किया, किन्तु यहां मुंज की पराजयः हुई। चौहानो से हार भूलकर , मुंज ने हूणों पर धावा बोला, हूणों को पराजित भी किया । 

मुंज ने आगे गुजरात के चालुक्यों को भी पराजित किया, चालुक्य राजा को राजधानी छोड़ भाग जाना पड़ा !!

#कर्णाट_विजय - उदयपुर प्रशस्ति से ज्ञात होता है, मुंज ने कर्णाट, लाट, केरल, ओर चोल के राज्यो पर भी विजय प्राप्त की थी।  लेकिन चालुक्यों की शक्ति को वे पूरी तरह तोड़ नही सके थे।  तैलप के बार बार छापामार युद्ध से परेशान हो, मुंज ने उसपर आक्रमण किया । मुंज के सेनापति ने कहा, की गोदावरी नदी पार मत करना  , लेकिन मुंज ने नदी पार कर दी । इस युद्ध मे मुंज की पराजयः हुई । मुंज बंदी बना लिए गए, ओर बड़ी निर्ममता से उनका वध कर दिया गया । यहां हार का कारण सैनिक शक्ति नही, बल्कि कामवासना थी।  चालुक्यों ने वहीं मायाजाल बिछाया, स्त्री की छाया से तो जहरीला सांप अंधा हो जाता है , यह तो फिर मनुष्य थे । 

#सिंधुराज  - मुंज की हत्या होने के बाद सिंधुराज  राजा बने, यह इतने योग्य शाशक न थे । 

लेकिन उनके बाद फिर परमारो के परचम लहराना था।  मुंज ही राजा भोज महान बनकर फिर से धारा का राजसिंहासन संभाल किया । 
परमारो में सबसे प्रतापी राजा यही हुए । 

            #महाराज_भोज_महान

महाप्रतापी, सुसंस्कृत, ओर कविराज भोज भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध राजा हुए है । जिन्होंने अपनी तलवार की धार ओर अपने ज्ञान से अपनी धारा नगरी को महान बना दिया ।  चक्रवर्ती नृप परमार अभिलेख एक मत से भोज महान के सामरिक गुणों की चर्चा करते है । उदयपुर प्रशस्ति से ज्ञात होता है, कैलाश से मलय तक ओर उदयाचल से अस्ताचल तक सम्पूर्ण पृथ्वी को पृथु के समान ही राजाओ को अपने धनुष से मिटाकर वसुधा भोगता था।  सम्पूर्ण भारत के पर शासन करने वाले भोज को आदिराज पृथु के समान ही वीर ओर प्रतापी राजा कहा गया है। जिसने उस युग मे भारत के मर्यादा की स्थापना की, ओर धरती प्रशन्न हुई !! 

कर्णाट ( कर्नाटक ) पर विजय - तैलप द्वितीय ने मुंज का बड़ी निर्ममता से वध किया था।  इसका बदला लेने की बात भोज के मन मे उठी होगी । कर्णाट पर उन्होंने हमला किया, ओर तैलप को बंदी बनाकर, उसकी उसी तरह निर्मम हत्या की, जैसे उनके तातश्री का वध किया था । इसके बाद इनके विजय अभियान चलते ही रहें !! लेकिन वे सभी राजपूत राजाओं की आपसी होड़ ही थी , वो विवरण जानकर कुछ लाभ नही होगा । भोज के मुसलमानो के साथ सम्वन्ध कैसे रहे, यह जानना जरूरी है !! 

#तुर्को_से_युद्ध

राजा भोज के समय महमूद गजनवी का भारत और आक्रमण हुआ था । तुर्को के आक्रमण के कारण भारत की स्थिति अत्यंत गंभीर हो गयी थी।  इन आक्रमणों से तत्कालीन राजाओ को अपनी स्तिथि ज्ञात हो गयी थी । मुहम्मद गजनवी ने परमारो ओर आक्रमण किया था, लेकिन भोज को वह भेद नही पाया, उसकी सेना को सीमा के बाहर से ही मार खाकर लौटना पड़ा । 

महाराज भोज की ने जीवन भर युद्ध किये और जीते । लेकिन उन्होंने अपने मस्तिक को केवल युद्ध तक सीमित नही रखा , बल्कि मालवा को एक आदर्श राज्य भी बनाया । अनेको मंदिर और भवन उन्होंने बनवाये, लेकिन वे सभी आज मस्जिद है, या फिर तोड़ दिए गए है । राजा भोज पर एक विस्तृत लेख लिखा जाएगा !!

भोज के बाद परमारो का पतन प्रारम्भ हो गया । बाद के सभी राजा वीर कम, ओर दार्शनिक ज़्यादा हुए । राजाओ के एक से अधिक विवाह करने के कारण सत्ता की लड़ाई, ओर तुर्को के आक्रमण के बीच पूरे राज्य का पतन हो गया ।

               परमारों तणी प्रथ्वी
परमार 36 राजवंशों में माने गए है | ८वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी विक्रमी तक इनका इस देश में विशाल सम्राज्य था!

                     #अग्निवंश
                     #परमार

कुल           –          सोढा परमार

गोत्र            –           वशिष्ठ

प्रवर            –      वशिष्ठ, अत्रि ,साकृति

वेद              –       यजुर्वेद

उपवेद         –        धनुर्वेद

शाखा          –        वाजसनयि

प्रथम राजधानी        –    उज्जेन (मालवा)

कुलदेवी                 –   सच्चियाय माता

इष्टदेव                   –       सूर्यदेव महादेव

तलवार                  –        रणतरे

ढाल                      –        हरियण

निशान                  –      केसरी सिंह

ध्वजा                   –       पीला रंग

गढ                      –        आबू

शस्त्र                    –        भाला

गाय                     –       कवली

वृक्ष                      –    कदम्ब,पीपल

नदी                     –     सफरा (क्षिप्रा)

पाघ                     –     पंचरंगी

राजयोगी              –      भर्तहरी

संत                     –     जाम्भोजी

पक्षी                    –    मयूर

प्रमुख गादी           –    धार नगरी

नोट -- निम्न जानकारियों में कुछ त्रुटि हो, तो अवगत अवश्य करवाएं !!

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