Wednesday 28 February 2018

सरकारी बजट ऐसे समझें

मान लीजिए भारत के पास केवल 100 रुपये हैं तो ...

100 रुपये किस -किस पर खर्च किये जाते हैं ::-

24.4 रुपये ब्याज भुगतान :-
विदेशी (विश्व बैंक से लिए हुए  कर्ज से लेकर घोटालों में डकारे हुए रुपयों का भुगतान)

12.2 रुपये, रक्षा हथियार :-
विदेशी (हथियार खरीदो, युद्द की स्थिति बनाये रखो, ताकि जनता को लगे हम हथियारों में आत्म निर्भर है, इसलिए खरीदना जरूरी है)

6.8 रुपये, सब्सिडी , food पर :
बिचौलियों के घर चलाने के लिए, तुष्टिकरण की राजनीति के लिए, अल्पसंख्यक व जाति के आधार पर वोट बैंक राजनीति के लिये ।

6.4 रुपये , राज्यों के लिए :-राज्यो के राजाओं के घर और सरकार चलाने के लिए ।

6.1 पेंशन :-
उन सरकारी कर्मचारियों के लिए जो देश की नौकरी करते  वक्त देश पर बोझ थे और रिटायर होने पर समाज में बोझ बने हुये हैं। इसमें सारे High Class सोसाइटी आती है ।।

6 रुपये  ग्रामीण विकास : -ताकि ब्लॉक आफिसर , सरपंच खा सकें और गांवों से  नौकर बनाये जा सकें, तथा कम्पनियो का महंगा समान बेचा जा सके ।

5.8 रुपये यातायात पर :-ताकि कच्चे माल को विदेशियों तक पहुंचाने में कम लागत आये , और विदेशियों का समान आम लोगों तक पहचाने में भी कम लागत हो।

3.9 घरेलू कामकाज :- ??

3.7 रुपये शिक्षा पर :- ताकि अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादा नौकर तैयार हो सकें ।यदि इस शिक्षा से समझदार ही तैयार होते तो विश्व मे जितनी भी समस्या हैं उनका जिम्मेदार शिक्षित क्यों है ?

3.3 रुपये विदेशी खाद :-कम्पनियो को सीधा सब्सिडी।

2.6 रुपये कृषि भोजन पर :-
ताकि नौकर जिंदा रहे और काम करता रहे ।।

2.3 रुपये स्वास्थ्य पर:-ताकि नौकर मरे नही ।।

1.9 रुपये नौकरों के मैनेजर पर :-शहरी विकास के नाम से खर्च होता है ।।

1.8 रुपये सामाजिक विकास :-
भीख बांटते रहे ताकि लोगों को भ्रम बना रहे कि राजा और उसकी सरकार दयालु है ।

यह बड़ी लूट (देश से लिया टैक्स व देश के साधनों को बेचकर) का हिस्सा बन्दर बांट में हुआ खर्च ।।

सरकार किसी की भो , यही सबने किया है , कोई भी पार्टी हो , यह व्यवस्था नही है यह चंद राजा लोगों को पालने पोसने के लिए बनाई गई एक मानसिक गुलामी की अर्थव्यवस्था है । क्योंकि विकास के नाम पर रोड , सड़क , एलपीजी , विजली , मोटर गाड़ी , अंग्रेजी शिक्षा , मुफ्तखोरी , मशीनीकरण को कटोरे में रखकर भौतिक सुख का मक्खन निकालकर बाँटा जा रहा है  । मानव दिन प्रतिदिन संवेदन हीन होता जा रहा है , स्कूलों में पांच -पांच साल के बच्चों की हत्यायें हो रही है , 8 माह की बच्चियों के साथ रेप हो रहा है , खुलेआम गाय और मनुष्य के माँस को बेचा जा रहा है उसके इस मानवीय पतन के लिए ना कोई बजट है और नाही कोई मापदंड या लेबोटरी जहाँ विकास की बजाय मनुष्य को पुनः परिभाषित किया जा सके ।

बुद्धजीवियों की टी वी पर डिवेट देखिये , ऐसे लगता है जैसे यह कुर्सी पर नहीं किसी पेट्रोल के तसले में बैठाए गए हों ।।

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